बेतक़ल्लुफ़ इश्क़ ही उनका मुझे दीवाना करता है l
मेरा मिज़ाज नही है कही यूं ही बहक जाने का ll-
मेरे आशियाने में आग लगाने वाले,
तू किस बहम में हैं,
बदला अग़र रुख़ हवाओं का,
तो ख़ाक तू भी होगा,
एक दिन......!!-
न व्यस्त हो न नाराज़ हो तुम
फिर किन गलियों में आज हो गुम
तुमसे बात करते हुए डर लगता है
बड़ी जल्दी ही बदलती मिज़ाज हो तुम-
मत कर ऐतबार मेरे मिज़ाज का
शायर हूँ
ग़म भी बहर में लिखता हूँ
- साकेत गर्ग-
कल न हो आज सा ऐसा आज बना लो
सूखे समंदर में भी चले ऐसा जहाज बना लो
काँटे तो काँटे होते हैं उनका नाम नहीं होता
पहचान बनानी है तो फूल सा मिज़ाज बना लो-
बदल जाता है
चाय का मिज़ाज
पहली चुस्की से
आख़िरी घूँट तक।
शायद प्रेम भी
चाय की तरह ही होता है।-
बदल जाता है मेरे शहर का मिज़ाज तेरे आने से
पूछूँगा कभी उससे इसका राज़ तेरे जाने से
हवा महकने लगती है, फ़िज़ा बहकने लगती है
बदल जाता है सभी का अंदाज़ तेरे आने से-
उनसे नज़रे मिली तो शिकायत हो गई
दुश्मन को दुश्मन से आशिक़ी हो गई
जवाब मांगा एक-टक देखते हुए
छोटा मुँह और बड़ी बात हो गई
देखी जो तस्वीर उनकी गेरो के पास
अब तो दोस्तो से भी मुलाकात कम हो गई
निकले जो मय-खाने में ग़म को भुलाने
पिये बगैर नशे में पूरी रात हो गई
क्या ही कीजियेगा मिज़ाज थोड़ा नर्मी सा हैं
फ़िर हमसे एक और बुरी बात हो गई-
हर शख़्स में शरीक कई शख़्स हैं।
आपस में मिज़ाज मिले भी तो कैसे।।-
चेहरे पे ज़रा भी शिकन ना नज़र आए
जो हम रूठ भी जाएं अपने जनाब से
ना जाने कहाँ से पाईं हैं उसने
ये बेपरवाहियां अपने मिज़ाज में-