रोज ना सही
आज तो गले मिल जाओ
क्यो तुमने इन दुरियों को बढ़ा दिया
क्यों तुमने हमारे रिस्ते से ज्यादा
अपने अहम को महत्व दिया
सब गिले शिकवे भूल कर गले मिल जाओ
पता नही कल हम हो ना हो
आओ आज तो गले मिल जाओ।।
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शब्दों के साथ खेलने में बहुत मजा है,
बस शब्दों को ठीक से सजाना सीख लो|
जेहन में पल रही सारी बातें जाहिर हो जाएंगी,
बस शब्दों में ठीक से उतारना सीख लो |
समझ जाएंगे समझने वाले कि तेरी रजा क्या है?
शब्दों को शब्दों से मिलाना सीख लो |
शब्दों की दुनिया में अलग ही मजा है,
बस शब्दों की दुनिया में घूमना सीख लो|
बड़ी-बड़ी समस्याएं पल में हल हो जाएंगी,
बस शब्दों को शब्दों से लड़ाना सीख लो|-
यूँ सामने, फिर से आहिस्ता गुज़र वो जाएगा!
कि सामने, में ही आ फिर, नज़र वो आएगा!
न अब बता, तेरी फितरत से हम जो वाकिफ़ हैं।
कैसा है तु "वक्त" बता जो समां भी अब तो शामिल है।
ठीक ठाक जो तुझे गुजारें तु समझ ले हम भी आक़िल हैं।
~वक्त एवं महत्व - ए वक्त सुन!~-
मेरे घर आँगन
वो बसती मेरे मन में
तीखी लगती स्वाद में
हर लेती हर व्याधि से
देखू कैसे न मैं उसको
जो महकाती हर पल मुझकों
गुणी सुंदरी ख़ुद में है जो
बह जाती स्वर में है जो
जिनकी आभा
जिनकी प्रभा
नीति गए संसार
गुण है जो गुणवान
है ये पूज्यनीय महान
छत्तीस ऱोग निवारे जो
मस्तिष्क तक बनाये धनवान
है वो माता सी पूज्यनीय
हम करते शीश झुका सम्मान
वेद पुराण लिख गए महान
घर आँगन करना सब ध्यान
सेवन करना सेवा भाव से
मुक्ति शक्ति मिले जैसे वरदान
Ruchi prajapati....-
✨निवाला, मातृप्रेम एवं लेखन✨
उन निवालों को कैसे भुलाया जा सकता है।
जिसमें कणें कम थीं परंतु प्यार अथाह था। ✨...(१)
जिनसे सलामत हैं ये तन्दुरुस्त तन और मन,
वाह! क्या उन्हें भी हमारा इतना परवाह था! ✨...(२)
न चाहने पर भी उन हाथों से खाना खाना पड़ता था।
माँ को मनाना, मुश्किल था, निगल जाना पड़ना था। ✨...(३)
तभी तो यह मन उदासी से हमें उबार पाया कभी।
न स्वप्न में भी कतई सोचा कि मौका आया अभी। ✨...(४)
गुमराही के दिनों में भी हल्का ऊजाला दिखा हमें।
कलम तैयार था पर स्याही न थी तो न लिखा हमें। ✨...(५)
हमने हमें लिखना तब शुरू किया जब पहचाना,
थोड़ा समय देख कुछ जाना, शब्दों को जमाना। ✨...(६)
पूरा असर शायद! प्यार के उन निवालों का ही है।
"कभी नहीं भूलना उन्हें", ये इरादा शायद सही है। ✨...(७)-
..... तुझ्यासोबत.....
तुझ, मनमोकळ हसणं महत्वाचं,
तुझ, तुझ्यासोबत असणं महत्वाचं.
रणांगणावर लढताना आज सखे,
तुझ, स्वप्ननगरीत नसणं महत्वाचं.
(पुर्ण कविता मथळ्यामध्ये वाचा)-
जल सी शीतलता व झुकी शाखाऐं ....
जीवन में व्यवहार की अहमियत बताऐं
बनना है तो इन जैसा बनो..
मैला धोने पर भी शीतलता
नहीं त्याजता....
तभी तो वो जल है कहलाता
ऊँचा वृक्ष शाखाऐं लंबी...
फिर भी वो धरा से जुड़ी जड़ों को
निहारती..
लहराकर हैं प्रणाम करतीं 🌳
हे जड़ रूपी पिता !तूने संभाला है
हमारी धरा रूपी माँ ने हमको
समझाया है..
पता है हमें तू बहुत चोट सहता है
पहले तुझे ही खोखला किया जाता है
आखिरी दम तक तू हमें सँभाले
रखता है..
हर हराकर दर्द को प्रकट करता है
पर तुझे नष्ट करने वाला ये नहीं
समझ पाता है ...।
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✍️✨इत्र✨✍️
इत्र की खूशबू का राज, न पूछिए!
यह तो इत्र ही इसे बता सकता है।
जरा धीमे से तो कभी सीने से उसे आवाज़ दीजिए!
खुद के गुणों को भरपूर वो खुद ही जता सकता है।
राज ये खुद ही बता दे तो लगे सपना है।
वैज्ञानिकों ने जो बताया, वह तो अपना है।
इत्र के मित्र तो बहुत हैं, इनकी मांग जो है।
दूर दूर तक कि दूरी भी कई फर्लांग जो है।
सेवा की आयु का क्या पता, शेष होगी।
समाप्ति जो है चरम पर तो विशेष होगी।
यूँ तो यहाँ इत्र का महत्व बखूब नज़र आता है सामने।
औषधि यह नहीं जो ये मुँह छुपाता है अक्सर दर्द थामने।
ज्यादा न करना प्यार इत्र से, बदमाशों ने तो खेल समझा है।
चेहरों पर छिड़क तेजाब, इत्र को मालिश का तेल समझा है।-