तेरा कुछ नहीं बिगङा,
..बस मरी ही नहीं मैं ।-
तुम्हें क्या लगता है , वो यूं ही मरी होगी.,
नहीं, वो मरने से पहले सौ बार मरी होगी..-
मरी हुई ख्वाबों की रूहों से
दोस्ती हो गई।
बेकली सी थी जिंदगी-ए-हाल
और कब्रगाह अब वो हो गई। ।-
सब कुछ भूल जाना चाहता हूं ।
कुछ अच्छी कुछ बुरी यादों को ।
बस कुछ पल मुस्कुराना चाहता हूं ।
खो जाने से पहले ।-
तुम्हें क्या लगता है , वो यूं ही मरी होगी.,
नहीं, मरने से पहले वो सौ बार मरी होगी..
वो बहुत रोई होगी और गिड़गिड़ाई होगी.,
फिर खुद को अकेला पाकर, वो डरी होगी..
वो चीखी-चिल्लाई होगी , छटपटाई होगी.,
और हजारों मिन्नतें, उन दरिंदो से करी होगी..
नोच रहे थे, उसके जिस्म को, जब वो दरिंदे.,
एक - एक पल में, वो हजारों बार मरी होगी..
पहले उसकी कमर तोड़ी , फिर जिह्वा काटी.,
तब उस बेचारी पर, क्या - क्या गुजरी होगी..
अगर कहती भी तो, क्या कहती कैसे कहती.,
सोचो उसके, घरवालों पर क्या गुजरी होगी ?
सोचता हूं कि, वो बस यूं ही तो, न मरी होगी.,
मरने से पहले 'मनीषा', हजारों बार मरी होगी..-
मरी नियत पर कभी शक मत करना,
मैं एक बार को वादे तोड़ सकती हुँ,
पर कभी तुम्हारा भरोसा या दिल नही।-
कदम-कदम पर ।
कांटे बिछा रखे हैं मेरे लिए ।
उनकी साजिश मुझे नीचे गिराने कि है।
मैं भी मुसाफिर कुछ अड़ियल सा हूं ।
मेरे पैरों की भी जिद मुझे मंजिल तक पहुंचाने की है ।-