वो आकर मेरे करीब मुझमें घर कर गया,
वीरान बस्ती थी मैं मुझको शहर कर गया,
थमी हुई थी ज़िंदगी यूँ बेबस किनारे सी,
छूकर निगाहों से मुझको लहर कर गया,
तलाश जुगनुओं की जब भी बारहां रही,
अंधेरी रातों को मेरी वो दोपहर कर गया,
मेरी तिश्नगी करीब उनके आकर ठहर गई,
दबी हसरतों को कामिल बेसबर कर गया,
ख़्वाहिशों का सफर ऐ 'दीप' मुकर्रर करके
मेरी बेचैनियों को इश्क़ मयस्सर कर गया !
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