आए बहुत रास्ते मे गिरने वाले मुझको ,
मैं उठा फिर सम्भला, सम्भल कर
फिर चल दिया राह अपनी ।
बेख़ौफ़ हो गया मैं पहले से ज्यादा
और खुद में विशवास भी जाग उठा ,
बस मैं हर बार खुद को मरने नही देता ..
अपनी सारी क्षमता फिर से लगा देता हूँ ..
चिराग़ बुझने से पहले हौंसलों का जगा देता हूँ ।
हा ! मैं बहुत कमजोर हूँ अपनी
उसी कमजोरी को ताकत बना देता हूँ ,
डूबने देता नही हूँ मै नाव अपनी
चप्पु हाथ मे इसकदर थाम लेता हूँ ।।
चलाता हूँ मैं फिर से शब्दों की कश्ती ..
उसे एक जाल में बाँध देता हूँ।।
कहीं बिखर ना जाए शब्द मेरे ..
उन्हें चरख़े में सूत की तरह कात देता हूँ ।।
बुनकर फिर से एक नई नज़्म,
मैं तुम तक पेश करता हूँ ..
पसंद आए तो दाद दे देना,
नही तो फिर से कोशिश करता हूँ ।।
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