चाहते सब है वफ़ा और ता-उम्र साथ रहना फिर दरमियाँ क्यूँ सबकी चाहत बदलती है ॥ -
चाहते सब है वफ़ा और ता-उम्र साथ रहना फिर दरमियाँ क्यूँ सबकी चाहत बदलती है ॥
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आजकल इश्क़ भी "विवेक" सियासत जैसा है हैसियत रसूख़ देखकर लोग पार्टियां बदलते है -
आजकल इश्क़ भी "विवेक" सियासत जैसा है हैसियत रसूख़ देखकर लोग पार्टियां बदलते है
कुछ पल वहा रुक जाना चाहिए थाहाल-ए-दिल सुनना सुनाना चाहिए था ॥क्या मिला यूँ रूठ कर चले आने से तल्ख़ीयों को अपने मिटाना चाहिए था॥ ये तल्ख़ियाँ मुझ पर हाबी हुई क्यूँ यूँ ग़ैरों की बातों में आना नही चाहिए था॥ -
कुछ पल वहा रुक जाना चाहिए थाहाल-ए-दिल सुनना सुनाना चाहिए था ॥क्या मिला यूँ रूठ कर चले आने से तल्ख़ीयों को अपने मिटाना चाहिए था॥ ये तल्ख़ियाँ मुझ पर हाबी हुई क्यूँ यूँ ग़ैरों की बातों में आना नही चाहिए था॥
मुफ़लिसी में गले कोई लगाता नही गिरने वालों को कोई उठाता नहीइसकदर मर चूकि अब इंसानियत बग़ैर मतलब क़रीब कोई आता-जाता नही॥ -
मुफ़लिसी में गले कोई लगाता नही गिरने वालों को कोई उठाता नहीइसकदर मर चूकि अब इंसानियत बग़ैर मतलब क़रीब कोई आता-जाता नही॥
ज़रूरी नही "विवेक" हो रूबरू दीदार तेरा ख़्यालों में रोज हम तुम्हें देखते है -
ज़रूरी नही "विवेक" हो रूबरू दीदार तेरा ख़्यालों में रोज हम तुम्हें देखते है
सुकूँन की तलाश में यूँ सब बे-सब्र और बेचैन है सब्र मंजिल-ए-सुकूँ है फिर अंजान क्यूँ है "विवेक" -
सुकूँन की तलाश में यूँ सब बे-सब्र और बेचैन है सब्र मंजिल-ए-सुकूँ है फिर अंजान क्यूँ है "विवेक"
तमाम आरज़ू दफ़्न है दिल मेफिर भी हम जिंदा टहलते है॥ -
तमाम आरज़ू दफ़्न है दिल मेफिर भी हम जिंदा टहलते है॥
अक्लमंद सब है मग़र समझदार रो रहे है वक़्त की रफ़्तार मे जब गिरफ़्तार हो रहे है इक उम्र गुज़र गयी तब हक़ीक़त समझ आई जन्नत की राह दूर है यहाँ सब भटक रहे है॥ -
अक्लमंद सब है मग़र समझदार रो रहे है वक़्त की रफ़्तार मे जब गिरफ़्तार हो रहे है इक उम्र गुज़र गयी तब हक़ीक़त समझ आई जन्नत की राह दूर है यहाँ सब भटक रहे है॥
नयनों को कुछ जब दिखता है हृदयागत भाव मचलता है जड़ हो वह या चेतनायुक्त अनुराग उमड़ने लगता है ॥लालसा तीव्रगामी होकर उन्माद बढ़ाने लगती है धीरज अधीर होकर परिवर्तित आचरण कराती है॥ -
नयनों को कुछ जब दिखता है हृदयागत भाव मचलता है जड़ हो वह या चेतनायुक्त अनुराग उमड़ने लगता है ॥लालसा तीव्रगामी होकर उन्माद बढ़ाने लगती है धीरज अधीर होकर परिवर्तित आचरण कराती है॥
तन मन अर्पण कर चुका हूँ तुमसे तुम तक ठहर गया हूँ चाह नही मन तृप्त है तुमसे अटल सत्य विश्वास दिया हूँ ॥प्रेम स्नेह बचाव करूँगा बातें मन की सब समझूँगामनोवृति सर्वोपरि रखकर प्रतिपल तेरे संग चलूँगा ॥ -
तन मन अर्पण कर चुका हूँ तुमसे तुम तक ठहर गया हूँ चाह नही मन तृप्त है तुमसे अटल सत्य विश्वास दिया हूँ ॥प्रेम स्नेह बचाव करूँगा बातें मन की सब समझूँगामनोवृति सर्वोपरि रखकर प्रतिपल तेरे संग चलूँगा ॥