कभी ग़मगीन करता है कभी रंगीन करता है
बता ऐ मेरे मालिक तू ऐसा क्यूँ करता है॥
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तेरी दहलीज़ पे आकर नही वापस मै जाऊँगा
ग़मों से लाद या रुसवा कर मै श्यामा श्याम गाऊँगा-
ख़्याल-ओ-ख़्वाब मे आते तुम्ही हो
हरवक्त यार हमको सताते तुम्ही हो॥
ढ़ूँढ़ती है नज़रें हर तरफ़ तुमको
यूँ बेचैन करके रुलाते तुम्ही हो॥
अब जाऊँ कहाँ बिछुड़कर तुमसे
बताऊँ किसे 'विवेक' छिपाते तुम्ही हो॥-
अपनों से सब रिश्ता टूट गया
आँखों का समुन्दर सुख गया॥
जो मेरे ग़म मे ग़मगीन नही थे
उनसे अब दिल रूठ गया॥
सुख मे तो पास सभी थे मेरे
दुःख मे सब मुझसे दूर हुआ॥
मतलब है केन्द्रबिन्दु रिश्तों का
अब प्रेम दिलों मे सुख गया ॥-
मेरे हृदयपटल पर है अटल निवास तेरा
आचरण मधुर तुम्हारा आवरण है घेरा-
एक पथ पर मन कब चलता है
हृदयागत भाव उमड़ता है
जब धैर्य असहज होने लगता है
बेचैन हृदय नयन रोने लगता है॥
मन क्रीड़ा करता है पल-पल
तन पीड़ा पाता है हर पल
विवेक विचार जागृत कर
मन कारक है हर प्रतिपल॥-
ज़ायका इश्क़ का दिल-ओ-ज़ा मे बसा है उनका
अब किसी और का ख़्याल भी बुरा लगता है॥-
तहरीरें लिखने का शौक़ नही "विवेक"
वक़्त की नज़ाकत ख़ुद बयां करता है-