सच ही कहा किसी ने
मोहब्बत कितनी भी सच्ची क्यू न हो
बेवफ़ा वही निकल जाते हैं
जो दिल के सबसे करीब होते हैं
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अफ़वाह तो ये थी, कि उन्हें 'इश्क" हुआ है हमसे,
पर लोगों ने पूछ-पूछ कर बेवफ़ा बना दिया..!-
एक बात मुझे आज तक समझ नहीं आयी,
तुम्हें "बेवफ़ा" बुलाऊँ या "इश्क़"..!-
कोई कसमों के
खातिर रुक गया ,
कोई अपनों के
आगे झुक गया ,
किसी को
वक्त ने मारा है ,
कोई हालातों
से हारा है ,
यहाँ
बेवफा कोई नहीं |
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किसी को इतना भी मत चाहो... कि भुला न सको ,,
क्योंकि ज़िंदगी, इंसान, और मोहब्बत ... तीनों बेवफ़ा है ..!!
- शशांक भारद्वाज...-
जुदाई के बाद भी अब वफ़ा करनी पड़ेगी
आने वाली हर नमाज़ कज़ा करनी पड़ेगी
मिलना बिछड़ना सब क़िस्मत का खेल है
फ़िर भी अब सबके लिए दुआ करनी पड़ेगी
लोग इस कद्र गुनाहों में डूबते जा रहे हैं अब
उनके संग मुझे भी अब इक ख़ता करनी पड़ेगी
लोग आते हैं और धोखा देकर चले जाते हैं
मुझे भी अब बे-वफ़ाई हर दफ़ा करनी पड़ेगी
ज़िन्दगी अब इक एहसान कर मुझपर ज़रा सा
वरना उसके लिए साँस भी फ़ना करनी पड़ेगी
तू तो जाहिल है पत्थर सा दिल है तिरा "आरिफ़"
अब तिरी नमाज़ भी मुझे ही अदा करनी पड़ेगी
इबादत है कोई "कोरे काग़ज़" की किताब नहीं
श़िद्दत के लिए ख़त्म अपनी अना करनी पड़ेगी-
हो गया आज इक गुनाह हो गया
हो गया वो भी बे - पनाह हो गया
इक ख़्वाब था उनके दिल में रहने का
अब वो भी मुझसे आज तबाह हो गया
जिसके बिना इक लम्हा ना जिया कभी
उनके लिए अब मैं भी बे - वफ़ा हो गया
दिल के टुकड़े करके चले गये कल वो यूहीं
इकट्ठे कर लूँ पर दिल को अब अना हो गया
मन्नतों से मिला था ये प्यार मुझे "आरिफ़"
इक गलती से वो भी अब ख़फा हो गया
मिलन का "कोरा काग़ज़" भी ना भर सका
उस से पहले इश़्क मुझसे क्यूँ जुदा हो गया-
एक शाम दोस्तों को क्या दी हमने,
तुमने तो हमें बेवफ़ा क़रार दे दिया..
एक दिन तुमसे क्यों नहीं मिले,
तुमने तो सवाल खड़ा कर दिया..
इश्क़ तो हमारी रूहानी थी,
तुमने तो ख़ुद से जुदाई दे दिया..
हम तो तड़प तड़प के मर रहे है,
जब से तुमने हमें तन्हाई दे दिया..
यूं तो गुज़रे वक़्त में तुम याद आओगी,
जब से तुमने इश्क़ में, बदनुमा दाग दे दिया...!-
पीकर जाम मोहब्बत का सारा नशा उतर गया
बात क्या की मैंने वफ़ा की बेवफ़ा हो गया
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