जन्म हुई तो कहाँ जश्न मनाया गया था
लड़की हूँ बस फर्ज निभाया ही गया था।
जैसे ही नन्हें कद़म, बढ़े तेज दौड़ने के लिए
धीरे-धीरे चलना है यही तो समझाया गया था।
बढती गई उम्र तो खाई फासले के, और बाँटे गये
भाई का अपना घर और मुझे पराया ठहराया गया था।
लो आ गई घड़ी विदा़ई की अब सजाकर मुझे रूलाया गया
वहा भी रंग सबका अजीब हमें ताना भी खूब सुनाया गया।
फिर से खुद को आइने में निहारती खुद को समझाती मैं
बचपन से अब तक सुनती रही पर बेजुबान नहीं...मौन हूँ मैं।
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