तुम में जाग ज़माने भर के लिये सोयी रहती हूँ मैं,
बिना, बिना के ये मनमर्जी करती हूँ मैं ।।
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चलो फिर से थोड़ा "इतराते" हैं,
पुरे उम्मीदों के साथ अपने "सोये हुए सपनों"
को फिर से जगाते हैं,
छोटी सोच वाले लोगों को उनकी "औकात" दिखाते हैं,
बिना माचिस के तिल्ली से ही जलने वालो के
दिलों में एक बार फिर "आग" लगाते हैं....!!!-
बिन तेरी सारी
खुशियां अधूरी है ;
सोच तुम मेरे लिए
कितनी जरूरी है ?
मां...-
बिना कान का "राजा" कहता,
मैं अपनी प्रजा की की सारी बात "सुनता" हूं,
क्या चलता है "देश में मेरे",क्या है सुगबुग,
मैं बखूबी समझता हूं,
और कहता अपनी "प्रजा" से,
हरदम मेरी ओर रहोगे पक्का ये "इकरार" करो,
आओं मेरे "भूखे नंगो",
मुझे ही "भगवान" समझो, मुझे ही "पूजो",
और मुझ से ही "प्यार" करो..!!
:--स्तुति-
दिन तो ढल गया तुम्हारा,सूरज भी छुप गया सारा
दिन तो गुजर गया,रात कैसे गुजारोगे मेरे बिना
सूरज को छुपा दिया ,चांद को कैसे संभालोगे मेरे बिना-
Writer Mr Vivek Kumar pandey
"बिना बारिश के मौसम बदल दू,
क्योंकि हूं में अलग,
तेरे आने से पहले में अपना रास्ता बदल दू".।-
कल रात मैं एक सपना देखी,
सपने में देखी एक ऐसा संसार,
जिसमें "औरतें" नहीं थी,
बस "मर्द ही मर्द" रह गए थे,
वे औरतों के लिए नहीं,
सृष्टि के राग के लिए भी नहीं,
बल्कि अपने लिए रो रहे थे...!!!-
मेरे साथ कोई एक दिन भी नहीं रह सकता।
जो मेरे साथ एक दिन रह लिया,
वो मेरे बिना एक दिन भी नहीं रह सकता।-