-
कहीं टूटा पुल, कहीं दरकती दीवार देगी
नाम पर तरक़्क़ी के यही सरकार देगी।
मैं बच भी जाऊँगा गर खुदकुशी से
हुक़ूमत किसी हादसे में मार देगी ।।-
वो महाकाल का पुजारी और मैं महादेव की दीवानी.....,
हम दोनों को सिर्फ एक से मुहब्बत है,और वो है भोले भंडारी!!
-
छद्म श्रृंगारित मैं संपूर्ण बनारस
एक तू ही सत् मणिकर्णिका घाट पिया-
'होली उत्सव'
होली आयी रे कन्हाई
रंग छलके सुना दे ज़रा बाँसुरी
छुटे ना रंग ऐसी रंग दे चुनरिया
धोबनिया धोये चाहे सारी उमरिया
मोहे भाये ना हरजाई
रंग हलके सुना दे ज़रा बाँसुरी-
कानों में झूमका,आँखों में काजल,पैरों में पायल,
जनाब! क्या सब सादगी
'बनारस' में चाहते हो।।
यूँ तो महबूबा की यादों में
अपनी बैचेनी लिखते हो,
जनाब! क्या अस्सी घाट का
सुकूँन पाना चाहते हो।।
रास्तों में भटकें हो तुम अपनी प्रेमिका से मिलने,
जनाब! क्या बनारस की गलियों
की आवारगी देखना चाहते हो।
आफताब भी है, और मेहताब भी,
मन्दिर भी है और मस्जिद भी,
बिस्मिल्लाह खाँ की शहनाई भी है,
और तुलसी के छंद भी।
चाय भी है,और पान भी,
साडी़ भी है, और गंगा भी।
जनाब! क्या नहीं देखना चाहते हो,
शिव नगरी 'बनारस' को।।
Vandana jangir
-
जो गर रूठूँ तुमसे कभी, मुझे काँधे पर सुला लेना
और चाहो मुझे देखना, तुम अस्सी घाट बुला लेना।-
'बनारस'की हवाओं से कुछ यूँ,दिल हारने लगा है,
हाँ,शायद मुझे एक बार फिर,इश्क होने लगा है!!-
सुनो न...
इक अरसे बाद आज दिल ए जज़्बात लिखती हूं..
लफ्ज़ों से जो बयां न हो कुछ ऐसे अल्फाज़ लिखती हूं..
तेरे इश्क़ में वो बनारस की घाट
और चांद संग हमारी पहली मुलाक़ात लिखती हूं..
मसला उलझा हुआ है इश्क़ में कुछ यूं
फिर भी कलम से हक़ीक़त कमाल लिखती हूं..
ना किस्से ना कहानी ना कोई ख़्वाब
बस इश्क़ में तुम्हें और तुम्हारा नाम लिखती हूं..
फिर भी लोग कहते हैं वाह वाह बहुत ख़ूब
क्या वाकई मैं बेमिसाल लिखती हूं..?
❤️❤️❤️-
तुझे घाटों का सुकून कहूँ,मगर तू गंगा की शफ्फाक लहरों में बहता इश्क है,
मैं तुझसे क्यूँ ना मुहब्बत करूँ,आखिर बनारस मेरा पहला इश्क है.........!!-