हरसू जुबां से तेरा ही जिक्र करते हैं
तेरे ब 'अद ख़ुद की फ़िक्र करते हैं
ब 'अद -उपरांत-
जबसे बदला हवाओ ने रूख आपका मिजाज भी बदला नज़र आ रहा है और तो कुछ नहीं ये हमारी जान निकल रहा है
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बरसों जिस शजर से, छाया औऱ फल लेते हैं...!
सूखने के ब'अद उसे, आख़िर काट देते हैं... !!-
दो तन एक जान-ए-ज़िगर, तुझसे ही तो मैं थी।
तेरे छोड़ जाने के ब 'अद अब मैं, मैं ना रही।।-
तू मेरे ब'अद मेरे इश्क की बस इतनी सी निशानी रखना,
अपनी हर सुखन में बस मेरी थोड़ी सी कहानी रखना।-
मुद्दत ब'अद नीम-शब में अचानक उसकी यादों की हवा आ गई,
सुकून देकर रूह की तड़प को गोशा-गोशा दिल का महका गई..-
रात भर ब-मुश्किल संभला मेरा वजूद-ए-ज़न मुझसे
फिर चला आया वो वहम दरो दीवार से निकल के इधर
फिर उसने ये जताया की तू किस काबिल नहीं है
फिर ये सोचा के वो भी तो ख़ुदा नहीं है...-
ब-अद = उपरांत, बाद
कर दे आँखें दान,आलम में जस नहीं कोई इससे बड़ा,
ज़िंदगी के ब-अद भी, किसी बे-नज़र का नूर बन जा।-