Kiran Dwivedi   (किरन)
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Married
Love to read and write poetry
Please like only after reading.
Joined 22 March 2019


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2 AUG 2019 AT 10:31

न रकीब दिल से गिला हुआ,,न शिकायत कोई,, फिर भी न जाने क्यूं,, तुझसे मिलने की वजह ही चली गई।।

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2 AUG 2019 AT 10:27

बिछड़ गया वो हमनशीं जो मेरे ख़्याल में था
जिसे जुनून था मुसलसल वो सवाल में था












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2 AUG 2019 AT 9:22


चलो आज मान ही लिया हमने हम अपने नहीं पराए हैं
क्या गलत हैै गर तुम दो पल के लिए अपनी नज़रे करम कर दो
हमें आता नहीं दिल को बहलाना क्या करें तुम तो वाक़िफ हो
उन आंखों की कसक थोड़ी सी नादानी वहम रख़ लो
किसी ख़्वाब का हासिल नहीं हो तुम तो बेशक हक़ीक़त हो
क्या गलत हैै बस थोड़ी देर के लिए ही सही हमें ख़्वाब में रहने दो
ये नाकाबिल दिल अक़ीदत मांगता है तुम ख़ुदा तो नहीं दो लफ्ज़ों की महरबानी हमें दे दो।।

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29 JUL 2019 AT 10:04

मन

आज मन
बेकल भटकता है
आत्माओं की भीड़ में
निराधार संकेतों मे
उलझता
दनुज विकार
मन में बसाए
देव होने की
इच्छा लिए
त्रुटियां अविरल
पल पल ले
आती हैं सामने
भटकनें
नहीं चाहिए अब
जीवन का वह
अबोध पल
जो आकर थाम ले
कांटों की तरह लिपटी
अशुद्धयां
बिसार दें
नहीं अब और नहीं
क्यों प्रतिपल
जीवित रहें हम
गिलानी और क्षमा के
हेर फेर में...

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26 JUL 2019 AT 9:48

मैं अगर लौट न पाऊं तो कोई शिकवा न करना
चंद रास्तों को मयस्सर नहीं कदमों के निशां।।

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26 JUL 2019 AT 8:54


इक अधूरी सी ग़ज़ल,,
हर शाम हुआ करती है नज़्म कहती है नगमे छुआ करती है,,
हर हसीं ख़्वाब पे हर्फ धुआं करती है,,
इश्क बरसात के मौसम का मोहताज तो नहीं,,
ये वो महफ़िल से जो,,
हर मौसम में सजती है
ये वो मंज़िल है,,
जो अपने अंजाम पे संवरती है...

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25 JUL 2019 AT 8:42

कहां दुनिया का चलन,, कहां मेरा बेचैन मन ,,कहां उसकी बेबाकी,, कहां मेरी उलझी सी सुखन,, सब मिटने वाला ही तो हैं,, फिर क्यूं है ये चुभन...

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25 JUL 2019 AT 8:22

रास्तों में वक़्त उलझा वक़्त में सौ ख्वाहिशें
हम खुद से ही न मिले औरों से क्या शिकायतें...

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24 JUL 2019 AT 19:39

मुझसे मेरी परछाइयों से क्या पहचान करोगे भला बहुत मुश्किल है समझना दर्द उस देहलीज का जिसको कोई रुकने वाला न मिला...

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22 JUL 2019 AT 9:16

Woh Pehli Hasrat si rumaaniyat nahi dikhegi ab
Syaah aankhon ka andhera khud b khud swal bn jayega

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