ना कहना फिर कि सांस हूँ तुम्हारी
यूँ पल पल का भर कर छोड़ देना
फितरत बन गयी है तुम्हारी ||-
पैसे से है पहचान,
पहचान से है तेरी इज्जत
कोई नहीं है महात्मा
सब की यही है फितरत-
गुजरते हुए वक़्त से
बहुत कुछ सिखा है
मैंने,
क्या बताऊँ ?
जनाब!
लोंगो की बदलती
फितरत भी देखी है
मैंने..!!-
दिलों में है अगर कोई रंजिश तो ,
बेहिसाब गिला करो क्योंकि हमारी
फितरत,ही ऐसी है जनाब की हम
फिर भी हस कर ही बोलेंगे आप से ...
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ज़रूरी नहीं कि वक्त अच्छा हो, तो फ़ितरत भी अच्छी होगी।
लेकिन अगर फ़ितरत अच्छी हो, तो वक्त ज़रूर अच्छा होगा।
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मेरी पीठ पीछे मुझ पर बेवफाई की गोलाबारी,
और सामने से मुझसे प्यार वाली बात भी करती है
फ़ितरत उसकी हू-ब-हू पड़ोसी देश सी है
वार और बनावटी प्यार दोनों साथ साथ करती है-
राख से क्या ज़िक्र आग का ,
और आग से क्या लगाने वाले का,
फितरत ही कसूरवार हो अगर,
ग़म क्या फिर उजड़ जाने का।-
कभी भी कोई इंसान बुरा नही होता हैं..
बस फितरत,सोच और हालात का फर्क होता हैं..-
मानो मेरी मंज़िल उसमें तबदील हो गई हो
उसकी मोहब्बत जैसे मेरी तकदीर हो गई हो।
दूरियाँ बढ़ाना फितरत में था उसकी
और उसकी गलतियाँ छिपाना मेरी फितरत सी बन गई हो।-
भले ही, शौहरत हमारी तुमसे, कई ज्यादा हो।
तुम, इन निगाहों की मोहब्बत़ पाने के लिए,अपनी फितरत, मत बदलना।
बस! तुम अपना दिल, नेक रखना और ताउम्र, हमें अपने संग, लेकर चलना।।-