जिंदगी का लुत्फ उठा रहे हैं वो..
जो कभी कहते थे तुम्हारे बिना जी नही पाऊंगा।-
फरेबी होंठ और झूठे वादों से तंग आकर
पढ़ लिया हमने भी फातिहा मुहब्बत पर-
एक साथ हुआ करती थी जिसे कईयों से मुहब्बत,
महँगी पड़ी मुझको ही उस दिलदार की मुहब्बत ।।-
सरे बाजार बुला कर इश्क क्या कर लिया
हमें भी उन्होंने उनसा बाजारु समझ लिया
अपने इश्क पर बड़ा दम हम भरते
सच्चे इश्क करने वाले कहा मिलते हैं
मिले जो पाक इश्क तो ता उम्र बंदगी करेंगे
फरेबी मोहब्बत से अच्छा है बेमोहब्बत मरेंगे
आज वो एक झुठ की दुनिया में खो गए
अच्छा हुआ जो खुद हमको भुल गए
आज हम उस हुस्न का गरुर तोड़ेंगे
वो क्या छोड़ेंगे, हम उनको छोड़ देंगे-
सबसे झगड़कर मेने तुझे
अपना बनाया था,
अफसोस
मेंने तो झगड़कर तुझे पाया था
तुझे कहा रास आता तुझे तो
सब बैठे बैठे मिला हाथ मे ।।-
यहाँ लोगों के लिए माइने इंसान नहीं
उसकी जात हो जाती हैं
यहा मुजरिमों को कम और शरिफो को
हवालात हो जाती हैं
एक छोटी सी गलती की भी इतनी बड़ी
बात हो जाती हैं
ये फरेबी दुनिया हैं साहब यहा बिन
बादल बरसात हो जाती हैं ।-
ज़माने में टूटते हैं तो सिर्फ़ साथ निभाने वाले,
फरेबी लोगों का तो पेशा ही दिलों से खेलना।-
अंदाजा लगा लिया था कि अब मुकर जाएंगे
तेवर बता रहे थे, तुम कब किसके शोख़ में रहे!!
एसी कोई खता नहीं थी जो इतने ख़फा हो गए
सज़ा सिर्फ मैंने पाई,तुम तो बड़े मोज में रहे!!
जो कोताही निकाल कर चले गए थे कभी
हम शाम-ओ-सुबह उस पर खुदको कोसते रहे!!
डगर डगर रुकना बिल्कुल नहीं चाहते थे
तुम्हारी आहत सुनी तो लोट आएंगे!सोचते रहे!!
फर्श पर कुछ चाह के मोती बिखरे पड़े थे
समेटने वालो में एक तुम्हारा चेहरा खोजते रहे!!
इंसाफ चाहिए था भीतर दबे जज्बे को शायद
रात रात जाग कर खुदा के सामने रोते रहे!!
यकीं हो गया अब,तुम्हारा राबता हमसे था ही नहीं
हम बढ़ चले हैं अकेले,साथ तजुर्बे बटोरते रहे!!-
यहाँ कौन लफ्ज़ों में सच बयाँ करता है
अरे सब वाह वाही के भूखे ही तो हैं!!!-