इतना प्यार नहीं करते हैं!
प्रियतम मेरी समझो न!
एकाकीपन क्या होता है,
हम-तुम जानें, जगत् न जाने!
दो मन बेघर तड़प रहे हैं-
प्रेम-अनल में , सहते ताने !
दोनों ओर उठ रही हृदय में,
पीर घनेरी समझो न!
प्रियतम मेरी समझो न!
-
शरद के स्वर्ण प्रभा से बिंधे प्रेम पथ पर खड़ी हुई हूँ प्रियतम मैं;
कज्जल-घन से ढकी व्यथा,प्रेम-ज्योति की राह निहारती सी मैं।
मंद समीर, शीतल अंगन,अरुण किरण संग कंपित सी हो रही मैं,
मेरे ह्रदय में गूंजे मधुर व्याकुलता,सपनों की छांव सी नाप रही मैं।
धरती-सी धीर झुकी हुई ,अरमानों की गठरी बांधे राह ताकती मैं,
सजल दृष्टि से,दूर से,प्रियतम कदमों के वास्ते अश्रु धार बहाती मैं।
फूल-फूल पर ओस झलकती,कैसा ये राग सजीव यही सोचती मैं,
प्रेम झंकार में डूबी,रख मौन अतीव, ढूंढ रही हूँ तेरा अधिवास मैं।
संभली,फिर भी थम-सी रह गई, वसुधा के जैसी चाँद निहारती मैं,
प्रवाहित जल से धुले सपने,शांति से हृदय में नव सपने बुनती मैं।
काश-वन की हरितिमा जैसी,प्रेम की उज्जवल झांकी सजाती मैं ,
हर साँस प्रियतम बाट जोहती,प्रेम मिलन कल्पित किले बनाती मै।
हृदय पर अंकित चाह यही,प्रिय आए ,आलिंगन अनुभूत करती मैं,
शब्द रचे, जो मौन कहे, शरद की सुरभित मिलन वंदना करती मैं।
प्रकृति की सुंदर छाया में, विरहिणी सी आसमान को तकती मैं,
प्रेम-शरद अद्भुत लीला में,प्रतीक्षा के दमन की आकांक्षा करती मैं।
यह शरद,प्रेमिल विभा, बने साक्षी मिलन गाथा की यही चाहती मैं,
निर्मल अम्बर, स्वागत में झुके, ऋत्विज़ा तेरे प्रेम के अभ्यर्थना में।-
तेरा अनुराग प्रियतम सदा से भाग्य मेरा है
मेरी स्मृतियों के गाँव में बस तेरा बसेरा है-
प्रेमी ही पागल होकर
कवि हो जाते हैं!
इन गुणों के संगम पर
ईश्वरीय सरलता है।-
"प्रेम में पड़ी
अल्हड़ लड़कियाँ
संजोती हैं अकेलेपन में
अपने प्रियतम से जुड़े स्वप्न....
और बड़े ही
हिफाजत से रखती
हैं अपने प्रियतम को
किसी दुर्लभ रत्न के भाँति.....
छिपाकर समस्त
संसार की नजरों से
सीमित रखना चाहती उनका
प्रेम अपने तक और सुशोभित
देखना चाहती उस रत्न को अपने माँग में..."-
प्राणनाथ!❤️
मैं "मां दुर्गा" जैसी साहसी स्त्री,
"मां गंगा" सी पवित्रता के साथ,
"मां पार्वती" जैसे तुमसे प्रेम करके
जन्म जन्मांतर के लिए तुम्हारी अर्धांगनी बनके,
"मां अन्नपूर्णा" जैसे तुम्हारे घर में प्रवेश करना चाहती हूं,
और "मां लक्ष्मी" जैसे तुम्हें अपना स्वामी
"श्री हरि नारायण" मान के तुम्हारे चरणों में
भाग्यलक्ष्मी बनके जीवनपर्यंत के लिए स्थान चाहती हूं!🌷👣❤️-
प्रेम में प्रेम से
भी अधिक होती है ,
प्रतीक्षा,
और
प्रेम का सही
अर्थ वही जानता है ,
जो प्रतीक्षा कर सकता है....— % &-