"लिखने से"
एक व्यक्ति ही बन जाता है..."एक समूह"
हो जाता है एक..."विचार और संस्कार"
समाज की 'धडकन' 'सांस' 'आत्मा' और "प्राण" !
सहसा अगर,
उससे ये "लेखन"
छीन लिया जाये;
तो 'समूह' का 'समूह'
बन जाता है "एक लाश" !!
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तुमको पाकर प्रिये हम कुंदन हुए
वन तुमसे मिले तो उपवन हुए,
तेरे स्पर्श से ख़िलते हैं हम फ़ूल सा
जीवन प्राण से तेरे यह चुम्भन हुए,
साथ साये सी है मुझमें तेरी हँसी
कई उलझनें हुई कई रुन्दन हुए,
इस शज़र में कहाँ थी ख़ुश्बू कोई
तेरे आलिंगन से ही यह ख़ार चंदन हुए,
इस रूह में तू ही होगी हर बार प्रिये
हर जन्म के यह तुझसे बंधन हुए,
तुमको पाकर प्रिये हम कुंदन हुए..;-
तुम आओ तो सही
हम मिलकर
बात करेंगे,
हर मुमकिन
संधि का हम
फिर प्रयास करेंगे ।
खत्म करो यूँ
दूर-दूर से
शिकायत करना,
हर मायूस
पल में हम
फिर से प्राण भरेंगे।
तुम आओ तो सही
हम मिलकर
बात करेंगे ।
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आखिरकार मेरे रिश्तों ने आखिरी सांस ली
और छूट गए उनके प्राण...
झूठ का ऑक्सीजन लगाकर उन्हे पलभर प्राण देना ,,
मैंने उचित न समझा!!-
तुम सूरज बन के ढल जाना
रुक जाओ अभी तुम कल जाना
जीवन ने बहुत है छला मुझको
चाहो तो तुम भी छल जाना
आँखों के रस्ते आये थे
आँसू बन कर के निकल जाना
चाहो तो प्यास बुझा दो मेरी
चाहो तो साथ में जल जाना
लेना हो मुझसे गर बदला
मुझको बदल के बदल जाना
प्राण तो पहले निकलने दो
फिर उसके बाद निकल जाना
ताजे हैं अभी तो ज़ख्म सभी
कभी आके नमक तुम मल जाना-
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राम
रामरामराम
रामरामरामराम
रामरामरामरामरामराम
रामरामरामरामरामरामराम
रामरामरामरामरामरामरामराम
रामरामरामरामरामरामरामरामराम
रामरामरामरामरामरामरामराम
रामरामरामरामरामरामराम
राम !रामरामराम! राम
राम राम राम
राम 🙏 राम
राम राम राम
राम राम राम
राम राम राम
राम 🙏 राम
राम रामरामराम राम
रामरामरामरामरामरामराम
रामरामरामरामरामरामरामराम
रामरामरामरामरामरामरामरामराम
🔔🙏 !! जय श्री राम !!🙏🔔
☆ॐ☆
🙏💥 जय श्री राम 💥🙏
—एक राम भक्त-
"क्रंदन हुआ अन्तस्थ में, भयभीत क्यों ये प्राण हैं,
आबाद थी कल तक धरा, अब बन गई शमशान हैं!
सिसकियाँ भी डर रही, आंखों में शेष अब नमीं हैं,
हर उपाय लगता हैं व्यर्थ, किस रहम की अभी कमीं हैं!
सैलाब भावना का उमड़ता कब श्वासों का पूर्णविराम हैं,
तबाही का मंजर भी वो ही और विश्वास भी वो राम हैं!
मोह में तब्दील रिश्ते सारे लोभ संसार का अनुराग हैं,
भूला मानव मूल्यों को अपने जीवन का अर्थ त्याग हैं!
अपराधों कि बनी शरणस्थली असहनीय दर्द पीड़ा हैं,
दुर्व्यवहार से खोखला करे सोच का घिनौना कीड़ा हैं!"-
हे सती क्या तेरे विरह में शिव भी अपने प्राण दें?
कूद पड़ें क्या यज्ञ कुण्ड में और तुझे प्रमाण दें?
पूछ रही हैं हिमशिलाएँ, ये कैसी तेरी माया है?
शव से लगने लगे हैं शिव भी, ब्रह्मांड भी घबराया है।
ताप इस संताप का देवी, समग्र कैलाश में फैला है।
नीलकण्ठ भी नीले पड़ गये, ये विष इतना विषैला है।
डोल रही है धरती देखो, और गगन भी डोल रहा।
हर की पीड़ा हर लो देवी, पत्ता पत्ता बोल रहा।
भस्म का चोला, पहन कर भोला, बैठा गहन समाधि में।
सानिध्य तुम्हारा बने औषधि, इस विरह की व्याधि में।
करो कल्याण संसार का देवी, कल्याणी अवतार लो।
इस त्यागी वैरागी को आकर, पुनः तुम स्वीकार लो।-
माटी से मूरत गढ़े, सदगुरू फूंके प्राण।
कर अपूर्ण को पूर्ण गुरु,
भव से देता त्राण।।।-