|| मैं और मेरी पारूल ||
जनवरी का हसीन महीना था, पारूल को मुझसे कुछ कहना था।
लिखा उसने प्रेम खत मुझे, पूछा कब मिलने का समय है तुझे।
अब तो कुछ समय ही बचे थे, क्योंकि मेरे जाने के सामान बंधे थे।
फिर एक यादगार शाम आयी, देखते ही उसके चेहरे पर मुस्कान छायी।
झूठ बोलती थी वो खुद से, क्योंकि आज नजर झुके थे उसके।
उसकी चाहत इस कदर थी, पहनी भी वो मेरे दिए हुए लाल स्वेटर थी।
बोली तुम बहुत याद आओगे, बाहर जाकर मुझे भूल तो नही जाओगे।
मैंने कोई जवाब नही दिया और उसने भी पूछने का जिद नही किया।
वक़्त-ए-रुख़सत वो लिपटी थी, उसके आँसु आँखों मे ही सिमटी थी।
मेरे बिना पारूल अकेली हो गयी, उसका प्यार मेरे लिए पहेली हो गयी।
फिर टूट गयी पारूल, सुनी नयी आहट और बढ़ गयी उसकी चाहत।
बदल गया मौसम, बुझ गई मोमबत्ती, और हमारी दोस्ती हुयी आहत।
अपने रिश्ता-ए-इश्क़ की खातिर मैने हर एक शक्श से लड़ लिया।
मुझसे भी अच्छा पाने के चक्कर मे उसने 32 सोमवार कर लिया।
अब तो मेरी शादी की तैयारी है, अफ़सोस पारूल अब भी कुंवारी है।-
कब तक झूठे सपने दिखाकर मुझे सुलाती रहोगी।
कब तक यूँ ही छत पर मुझे मिलने बुलाती रहोगी।
मैं डरता हूँ हर पल तुमको खोने की डर से,
महफ़िल में हर शक्श तुम पर दिल जो फेंक रहा है।
सो जाते घरवाले तब ही निकलता हूँ घर से,
लेकिन 'वो चांद' तो चुपके से सब कुछ देख रहा है।
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खिड़की जरा खोल कर रखना,
मैं आज फिर ख़त फेंकूँगा।
बिना पढ़े कैसे निचोड़ती हो तुम,
आज फिर एक बार देखूंगा।-
प्यासी सी इस कदर मेरे इश्क में पारुल,
पीने के लिए भी उसे 'मेरा रक्त' चाहिए था।
हाथ थामा जो मैंने, छोड़ता नही कभी,
बस मुझे उससे थोड़ा सा वक़्त चाहिए था।-
आज फिर से एकबार मिलने को दिल बेकरार था।
आखिरी लम्हे तक पारुल को बस मेरा इंतजार था।-
जो उठते हैं दूसरों को गिरा कर
वो खड़े हैं अपनी ही कब्रगाह पर
पड़ी है लत जिन्हें
काट कर दूसरों को कद अपना बढ़ाने की
वो तय कर नहीं पाते ऐसे जोड़ों लम्बी दूरी
वो आखिरकार बिखर ही जाते हैं
एक ही ठोकर खाकर।-
मैं ख्वाइशें बुनता रहा,
तुम धागें से बढ़ते रहे..!
मैं नींद में भी चलता रहा,
तुम सहारा बनते गए..!
मैं ठहरा तो तुमने चलना सिखाया,
मैं थका तो तुमने हौसला बढ़ाया..!
मैं पतझड़ की तरह टूटा अगर,
तो तुमने सींचकर वृक्ष बनाया..!
मैं हारा जब भी अपने आप से,
तुमनें सँभाला हर बार मुझे..!
रिश्ते बहुत हैं ज़माने में,
लेकिन सबसे खुसबसूरत बहन-भाई का लगा मुझे..!
(धन्यवाद #बहना❣️)-
अयोध्यारूपी दीप तुम्हारे आँगन में जगमगाये,
खुशियाँ तुम्हारे चेहरे पर बसेरा लेकर आये,
तुम हर दुःख भुला कर, ख़ुशी के पलों में मगन हो जाओ,
ये दीपावली तुम्हारे लिए खूब सारी खुशियाँ लेकर आये...!!
🎉🙏 दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं बहना जी🙏❣️
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पारुल
पापा की परी है पारुल।
मम्मी से लड़ी है पारुल।
भाई बहनों से भिड़ी है पारुल।
बड़ी नकचड़ी है पारुल।
कहने को चाहे जैसी हो पारुल।
दोस्तों के दुख में खड़ी है पारुल।
दोस्तो की खुशी है पारुल।
दुश्मनों से लड़ी है पारुल।
बड़ी मनचली है पारुल।
हिमाचल की एक कुडी है पारुल।
मंडी में पली बढ़ी है पारुल।
अतुल की अर्द्धांगिनी है पारुल।
तनु की इकलौती मासी है पारुल।
दो प्यारे बच्चो की मम्मी है पारुल।
मेरी भी अच्छी दोस्त है पारुल।
अब और क्या लिखूं पारुल?
!!जय श्री कृष्ण!!
नीलम सर्वेश यादव
२८
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पारुल हो 2020 हमारा,
सभी को मिले, खुशियों का पिटारा,
मनवांछित इच्छा पूर्ण हों सभी जनों की,
यही कामना करते हैं हम अपने प्रभु से...-