प्रेम को कोई परिभाषित नहीं कर सकता ,
जो स्वयं में सम्पूर्ण उसे खंडित नहीं कर सकता।
आत्मा से प्रेम करने की बातें कही जाती है,
मगर आत्मा से परमात्मा-सा प्रेम कोई कर नहीं सकता।
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परमात्मा ! देख खुबसुरत झूठ प्रकृति का, अमीर के नये लिबास उदास हैं,
उतरन पहने खड़े बच्चो पे सची मुस्कान है, तन पे रेशम ढक कर,
बताता इंसान खुद को भगवान है।।-
हे परमात्मा...
ख़ुश कर दें हे परमात्मा
हां आज यों मेरी आत्मा
तने दिया जन्म...
तने जन्म दिया हर के द्वार में...
हां तने जन्म दिया अपने द्वार में..
फ़िर क्यों दुःखी है यों मेरी आत्मा
हे परमात्मा....
हां रेे परमात्मा... ख़ुश कर दे!..
सत् चित् आनंद बणा दें... हे परमात्मा...🙏.-
हे परब्रह्म परमात्मा!
शरीर चाहें कितने कष्ट ले!
सिर्फ़ ख़ुश रहें यों आत्मा!
ज्ञान मान और सम्मान की
गंगा बहे पवित्र प्रेरणा की!
जिससे सबका भला हों!..
यहां जहां और संसार में!..
आनंद मैं भारत में विश्व में
विश्व गुरु हों! हिन्द भारत!..
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हां मैं आत्मा बन पृथ्वी लोक पर जब भी आया!
हर ने बिना दिव्यदृष्टि हर हरि को नहीं पहचाना।
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जीत तो मेरे प्यार की तभी हो गई थी,
जब उसने कहा था कि तुम्हें चुनू या परमात्मा को।-
मैं सत्चित् हूं आनंद और धर्म भी
शरीर मेरा नर है आत्मा नारायण है
यानी कि मेरी परम् आत्मा है
परमात्मा के सामान परमात्मा है!
सिर्फ़ सिद्ध करना बाक़ी है अपने कर्मों ओर विचारों से
नाम आनंद है इस जन्म में आनंद पाना बाक़ी
यानी कि मोक्ष अध्यात्म के जरिए।
आनंद सत्चित् योग समय संगत
विवेक वास्तविकता के जरिए।-
हे परम् परमात्मा हर हरि हम् वंदे ब्रह्मविश्वम्
मातरम् परम् आदि पराशक्ति प्रज्ञा सत्यम् हम्
सत् सात्विक सनातन को प्राप्त् हों हे सत् चित्
आनंद सर्वव्यापक सर्वांतर्यामी स्वयं हम् आत्म्
परमात्मा आप स्वयं हम् हर हरि को प्राप्त् हों!|-
हर पल तेरा एहसास रहे,
ज़िन्दगी तुझसे ही खास रहे !
कुछ न मिले मुझे मेरे दाता,
मगर सिर पर तेरा हाथ रहे!
मैं कर सकूं सबकी खुशियाँ के लिए अरदास 🙏🙏
बस दिल मे इंसानियत और जज्बात रहें !
और तू कर सके इन्हें परवान इतनी
पावन पवित्र मेरी फरियाद रहे !🙏🙏🙏🙏🙏-