फिलहाल तो यूं हैं कुछ कर नहीं सकते
उम्र अपनी कम है चुनाव लड़ नहीं सकते-
देखऽ लड़े के बा परधनिया हो।
तऽ घूमि घूमि पूछें परशनिया हो।
बनते परधान केहू नियरा ना आवे।
वोट लेबे खातिर बेरि बेरि घुरियावे।
चाचा,चाची के अब छुवे सभे पउवाँ।
दिनभर में कई बेर घूमे सभे गउँवा।
भइल बा सभे राजा दनिया हो।
देखऽ लड़े के बा परधनिया हो।
मीट खियावे तऽ केहू दारू पियावे।
हालचाल पूछे सभे दुअरा पर आवे।
चाक चौराहा भइल बाटे गुलजार हो।
पाँच बरिस के आइल बा त्योहार हो।
आ गइली नया नया कनिया हो।
देखऽ लड़े के बा परधनिया हो।-
अंधे राह दिखाए रहे,
गूंगे भी बतियाए रहे
बहरो में काना फूसी है
लंगड़े दौड़ लगाए रहे,
सुना अब चुनाव मा है
शहर छोड़ गांव मा है।।
# पंचायत चुनाव
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लेके हुक्का बैठ गये है, खाट बिछा के काका।
अब चर्चा वोंटन की करिहैं, फिर सब मरिहैं ठहाका।
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जीवन की विडंबना....
जिस परिवार की प्रतिष्ठा उसकी एकता की वजह से रही हो।वही परिवार राजनीतिक प्रतिष्ठा को लेकर आज बिखरता हुआ नजर आता है।बाबा ने जिस परिवार को हमेशा एक प्रेम रूपी माला में मोतियों की तरह पिरो के रखा,आज वही परिवार टूटता हुआ नजर आ रहा है।-
प्रधान प्रत्याशी का गांव के लोगों से
मार्मिक वार्तालाप—
सड़के तुड़वाएंगे गड्ढे करवाएंगे
बिजली कटवाएंगे , लालटेन जलवायेंगे
मकान तुड़वाएंगे , झोपडी डलवाएंगे
वोट मुझे ही देना हम तुम्हारे बहुत काम आएंगे
डिजिटल अकाउंट हटवाएंगे कैश का प्रचलन करवाएंगे
पेड़ कटवाएंगे , झाड़ उगाएंगे
स्कूल तुड़वाएंगे , ठेका खुलवाएंगे
वोट मुझे ही देना हम तुम्हारे बहुत काम आएंगे
कानून का राज हटवाएंगे डकैती करवाएंगे
ईमानदारी कम घूस लेकर काम करेंगे
वोट मुझे ही देना हम तुम्हारे बहुत काम आएंगे-
चलऽ उठावऽ झोरा मँगरू, परधानी अब बीत गइल
पाँच बरस पर आइल रहलें, सब छोड़ छाड़ शिवकाशी से
दउरल-भागल छोटको भैवा, आइल टिकट कटा के झाँसी से
परधानी के चस्का ले डूबल, खीरा के ढेंपी तीत भइल
चलऽ उठावऽ झोरा मँगरू, परधानी अब बीत गइल
सुक्खू चाचा सरपंच रहें जब, आवास क पैसा खाय गए
मनरेगा में बन्हल कमीसन, सौचालय भी गटकाय गए
अगले साल क बजट देख, फिर परधानी से प्रीत भइल
चलऽ उठावऽ झोरा मँगरू, परधानी अब बीत गइल
चाचा मूछ पर ताव धरे, फिर लड़त रहें दमदारी से
रुपया पैसा साया साड़ी, दारू मुर्गा रंगदारी से
बनल बनावल माहौल रहल, न जाने कब विपरीत भइल
चलऽ उठावऽ झोरा मँगरू, परधानी अब बीत गइल
ओह टोला के नौधा लइका, पिछले साल कोरोना में
रासन पानी पूछत घूमल, गाँव के कोना कोना में
सुक्खू चाचा ताकत रहि गइलें, ऊ जनता के मन के जीत गइल
चलऽ उठावऽ झोरा मँगरू, परधानी अब बीत गइल-
हम तो लाये इंग्लिश शीशी,क्या हमें जिताओगे।
हम तो लाये इंग्लिश शीशी,क्या हमें जिताओगे।
एक बोतल....एक बोतल....
एक बोतल लेकर के ,तुम तो भग जाओगे।
एक बोतल लेकर के ,तुम तो भग जाओगे।
हम तो लाये इंग्लिश शीशी,क्या हमें जिताओगे।
जब तुम्हें अकेले में दारू पीने की याद आएगी...
"कटे कटे से रहते हो क्यों?
कटे कटे से रहते हो ध्यान किसका है?
ज़रा बताओ तो यह चुनाव निशान किसका है?
हमें मत जिताओ तुम,मगर ये तो याद ही होगा,
तुम पर ज्यादा अहसान किसका है?"
जब तुम्हें अकेले में दारू पीने की याद आएगी...
जब तुम्हें अकेले में दारू पीने की याद आएगी।
खूब पीने की...खूब पीने की...
खूब पीने की चाहत में दौड़े - दौड़े आओगे।
खूब पीने की चाहत में दौड़े - दौड़े आओगे।
हम तो लाये इंग्लिश शीशी,क्या हमें जिताओगे।
हम तो लाये इंग्लिश शीशी,क्या हमें जिताओगे।-
यदि परिवर्तन लाना हैं।
तराजू पर मुहर लगाना हैं।।
धर्मेंद्र कुशवाहा को जिताकर।
विकास की गंगा बहाना हैं।।-
ना रुके है कभी,ना थके है कभी।
हौसलों की उड़ान अभी बाकी है।
जब मन में हो सेवा भाव,
सफर निरंतर जारी है।-