तुम्हें भी अगर है मुहब्बत ज़रा सी !!
निगाहों से कर दो शरारत ज़रा सी !!
न हो हम जुदा, एक दूजे से दिलबर !
करें ये खुदा से इबादत ज़रा सी !!
बहाने बनाते न मिलने का हरदम !
हमारे लिए तो, न फुरसत ज़रा सी !!
अगर मेरी चाहत मुकम्मल न होगी !
तो मिलकर करेंगे बगावत ज़रा सी !!
सफर जिंदगी का ये कट जाए मोहन !
हमें दे दो ऐसी अलामत ज़रा सी !!-
जंग चली निगाहों में ,
लोग खड़े कतारों में,
कत्ल हुए इशारों में,
बदन पड़े बाजारों में,
मंडियां लगी टोली में,
गोलियां चली बोली में,
पैसे मिले चंद सिक्कों में,
रोटियां तब आई हिस्सों में।-
आँखों में नशा ही नहीं होठों पे जाम भी चाहिएं
ऐ-खुदा यार भी मुझे क़ातिल निग़ाहों वाला चाहिएं
----------------------------------------------------------
लाखों अमीर निगाहों ने, हमसे, अपनी मोहब्बत़ का, इज़हार किया,
फ़क़त हमने, तेरे अमीर दिल को ही, अपनी निगाहों का, प्यार दिया।।-
निगाहों को निगाहों से मिलाता चल
तू अपने ज़ख़्म अपनों से सिलाता चल
न मिलता है यहाँ कोई अगर तुझको
जहाँ जाए सभी अपना बनाता चल-
निहायत खूबसूरत है उनका सुरूर-ए-इश्क़,
उतर निगाहों से मिरे रूह तक असर रखता है !-
शायद! तुम बेखबर हो, हमारी निगाहों की मोहब्बत़ से।
बस! तुम अंजान ही रहना, वरना, मजा़ न आऐगा,
हमें, सरे आम, मोहब्बत़ करने में।।-
बेहतर होगा कि हम तेरी निगाहों से, दूर हो जाए।
वरना! जी न पाएंगे हम,
अगर इन निगाहों को, फिर तुम से, कहीं मोहब्बत़ हो जाए ।।-
अपनी इन निगाहों के, पलकों को गीरा लूं,
या इन्हें, तेरी निगाहों से मिला लूं।
बता अपनी रज़ा, किस अदा से, तुझे अपना बना लूं।।-
कैद, कर लिया है हमने तुम्हें, अपनी इन निगाहों में।
बस! हम भी, कैदी बन जाना चाहेंगे, तेरी इन महफूज़ बाहों के।।-