महाराष्ट्राची सांस्कृतिक परंपरा
नऊवारी नेसून मारती चकरा
मोगऱ्याच्या फुलांचा केसात गजरा
चंद्रकोरिने शोभून दिसतो चेहरा
बघून तुला पोरी घायाळ झाले सतरा
लॉकडाऊनच्या काळात गाजलेला
फक्त आणि फक्त 'नथीचा नखरा'
-
ये चाँद हल्के दाग में ही अच्छा लगता है
ज़रा सा खींचा हमने और नथ पहना दी।-
जाने किन के हाथों उतरनी है
इन कविताओं की नथ।
मैं क्यों छोड़ आता हूँ
उन्हें लिख कर बाज़ार में।-
ज़मीं की जंग पुरखाशी में गुज़रेगी
मगर हैरत है क़ल्लाशी में गुज़रेगी
बदन का क्या कहीं भी ख़ाक हो जाए
बची इक रूह...जो 'काशी' में गुज़रेगी
मुझे पर फ़िक्र बस अगली सदी की है
सदी ये नथ की' नक़्क़ाशी में गुज़रेगी
तिरा लहज़ा,तिरी बातें,तिरा चेहरा
समझ लो उम्र अय्याशी में गुज़रेगी
ग़ज़ल में 'नीर' यूं तो ग़म बिकेगा पर
ग़लत है आह.., शाबाशी में गुज़रेगी-
मुझे पर फ़िक्र बस अगली सदी की है
सदी ये नथ की' नक़्क़ाशी में गुज़रेगी.-
वो पिला कर जाम
लबों से अपनी मोहब्बत का..
अब कहते हैं ....💕
नशे की आदत अच्छी नहीं होती...-
पहन के नववारी पहनु तुझे
सजा के चुनरी ओढू तुझे
डाल के कंगना खनकाऊ तुझे
बांध के कमरबंध बांधू तुझे
लगा के बिंदी चिपकाऊ तुझे
पिरो के नथ चमकाऊ तुझे
रचा के मेंहदी महकाऊ तुझे
अब तू ही बता, इससे ज्यादा
कितना प्यार जताऊ तुझे,,,,,-
#Suno__sahiba
#लौटाने तो आये थे हम तेरे कानों का #झुमका 💋
💝💝
तेरी नाक की #नथ देख कर फिर #बहक गये हम😘-
ओठांवरती रेंगाळत ती, डुलते तिच्या चालीवर
शोभती ते शुभ्र मोती खुलले हसऱ्या चेहऱ्यावर
भाव हजार नजरेत त्या, अलगद मिटते पापणी
हसरा मुखडा तिचा, नजर नथेवर देखणी
नजरेचा कटाक्ष असा की, धारदार नयनतलवार
वार्याच्या झोताने करी, बट मोत्यांना स्पर्श अलवार
चढविला अंगी साज, साज तिचा निराळाच दिमाखी
खुलुन आले तेज तिचे शोभे मोत्यांची नथ नाकी
नक्षीदार नथीचा तोरा मोती त्यात गुंफलेले
शृंगारात ती न्हाहून गेली, मन रूपात गुंतलेले
-