काँधे पर नटखट शरारतों का बस्ता लिए,
वो स्कूल गया था।
शरारतें कैद ही रह गईं,
....बस्ता आज़ाद हो गया ।। 📚
-
पूरी रात बीत जाएं,
मजाल है इस मासूम प्राणी को,
ढकने में कोई सफल हो पाएं।🤣🤣-
तु रास रसावे सबको रिझावें....
व्याकुल तेरे दरस को ये बेचारी!
नटखट रंगीला तेरा हैं अंदाज....
कबसे हम तरस रहे देख छटा न्यारी।
रंग बरस रहें, लगा के अंग....
बरसानें में खेलें होली संग राधा प्यारी!
ना तड़पा तु हैं छबीला, जाने है सबकुछ
कुछ रंग इधर बरसा दूर कर अब तड़प हमारी।
मैं बेबस हूं, कन्हाई, मैं हूं लाचारी.....
देख जरा इधर तो कृष्ण मुरारी,मेरे बांके बिहारी!
-
दुनिया की समझ आयी,
चला गया अपना नटखटपन,
आगे बढ़ने की दौड़ में,
जल्दी बीत गया अपना बचपन।।-
मैं नटखट सी एक परी हूँ
मैं प्यारी सी एक कली हूँ
ख्वाबों मे उड़ती हूँ
आसमान पर ठहरती हूँ
मैं एक प्यारी सी कली हूँ
होंठो पर मुस्कान लिए
दूसरों को मुस्कान देती हूँ
ख़ुदका हौसला बनकर
दुसरो का हौसला बनती हूँ
मैं एक प्यारी कली हूँ
नटखट सी परी हूँ
सबको प्यार करने वाली कली हूँ
सबका दुःख दूर करने वाली उम्मीद हूँ
मैं गुल की निराली
कुछ दिलों की प्यारी जिंदगानी हूँ ।-
जब भी देखता हूँ किसी छोटे बच्चे को
मेरे अंदर भी जाग जाता है बचपन
वो नटखट अटखेलियाँ
वो प्यारा सा बचपन
मुझमे भी जाग जाता है बचपन
हालाँकि नहीं आती मुझमें अब वो बचपन
लेकिन फिर भी जी लेता हूँ मैं अपना बचपन
वो बोलना तोतली भाषा में
याद आ जाता है मुझको मेरा बचपन
ये बढ़ती उम्र ने बस यही बात सिखलायी
जिंदगी में सबसे प्यारा है बचपन....
पूरी जिंदगी का एक यही सार है..
याद आ जाता है मुझको मेरा बचपन.....!!!
Date:- 19 September 2017©-
नटखट बचपन बचपन नटखट
करता रहता खटपट-खटपट
कभी ना रहता शांत मैं कभी
था बड़ा ही नटखट-नटखट
जब परेशान हो जाती माँ
मुझे सुलाने लगती माँ
भाग जाता था झटपट-झटपट
करता रहता खटपट-खटपट
था बड़ा ही नटखट-नटखट
माँ रखती थी पूजा की मिश्री
भोग लगा जाता था मैं ही
पूछती माँ जब मुझसे
बड़े प्यार से कह देता ना
याद आता है मेरा बचपन
था बड़ा ही नटखट-नटखट
चुरानी हो गुल्लक से पैसे
निकाल ही लेता जैसे- तैसे
जब पूछती माँ फिर से मुझसे
बड़े प्यार से कह देता ना
याद आता है मुझको बचपन
था बड़ा ही नटखट- नटखट
वो बचपन छूटा, छूटी सब बातें
याद आती है बस इसकी बातें
नहीं लौट सकता फिर उस पल में
जानता हूँ फिर भी अंजान हूँ
आ जाये अगर मुझे बुलाने
चलना है बचपन के सफर पर
तैयार हो जाऊँ मैं झटपट-झटपट
बचपन में था कितना नटखट
Date:- 19 September 2017©-
🚹🚹🚹🚹मेरा बचपन🚹🚹🚹🚹
माँ का दुलार था
पापा का प्यार था
खुद में मशगुल मैं
खुद बेमिसाल था
वो नटखट भी नाम था
शरारत करना ही काम था
माँ को परेशान करना
उन्हें पकड़ने के लिए दौड़ाना
फिर कहीं छुप कर बैठ जाना
यही तो काम था
ना कोई फिकर थी ना कोई गम था
तेवर भी अपना ना ही कम था
हर वक़्त थी तो मौज और मस्तियाँ
करता रहता था सिर्फ अटखेलियाँ
बढ़ती उम्र ने छिन लिया अब सब
हाँ जिन्दा है मुझमें कहीं मेरा बचपन
उसी के सहारे अब ये सफ़र तय करना है
मेरा बस यही कहना है
वो दिन भी कितने अच्छे थे
वो बचपन के दिन भी कितने अच्छे थे....!!!
Date:- 19 सितम्बर 2017©-
नटखट सी थी, जब बेफिक्र थी वो..
आज सयानी हो गई है जिन्दगी कि उलझनों मे!!-