कई बार तुम्हारे शब्द
ध्वनि बन जाते हैं
होती रहती है उनकी आवृत्ति
मैं बन्द रखती हूं कान
कि मन पर उनका स्पंदन होता रहे
धड़कन बनकर
आवृत्ति-दर-आवृत्ति.-
कविता,
कविता बनने से पहले
होती है शब्द
और शब्द बनने से पहले होती है
कवि के मस्तिष्क में टकराती ध्वनि तरंगें।
कवि सुन लेता है उन्हें,
चाहे तब मन शांत हो
या अशांत।
विज्ञान के अनुसार
मनुष्य सभी ध्वनियों को सुन नहीं सकता
मगर कवि सुन सकता है।
मैं सुन सकता हूँ
टूटते तारे की ध्वनि
बहते आँसू की ध्वनि
खिलती कली की ध्वनि
ये ध्वनियाँ मुझे सोने नहीं देती।
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तेरी लहरों की ध्वनि पीकर ही इंतज़ार किया,
किसी दिन तुझमें भी ढल जाने के ख्वाब से
लहरों को शिद्दत से सुनता रहा ।।
ऐसा नहीं था कि ध्वनि से मन भरा,
रेत नहीं मैं चट्टान था, तुझसे बहुत दूर था,
तेरी खोज ना मुझ तक लहराई,
ना मेरी चाहत ज़रा भी हिल पायी ।।-
प्राणिजगत में अंग भी मुखर हो उठते हैं। दाँत बजते हैं, हड्डी चटखती है, कान पटपटाते हैं, उँगलियाँ चटकती हैं या पुटुकती हैं, हाथों से ताली बजती है, उँगलियों से चुटकी, पद-चाप प्रसिद्ध ही है, पेट गुड़गुड़ाता है, हृदय धड़कता है, नाक घर्र-घर्र बजती है, कान सनसनाता है।
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जिन पीड़ाओं में कोई "ध्वनि" नहीं होती,
वहीं पीड़ा सबसे "घातक" होती है..!!!-
प्रेम दो व्यंजनों के मध्य छुपा वो स्वर है जो व्यंजनों को ध्वनि देता है.
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मातम की अंतहीन ध्वनि
रातों को विचलित करती है
हर माँ के सूख जाते हैं आँसू
जब महल्ले में गरीबी पसरती है-