सौंदर्य ध्यान को आकर्षित करता है,🤗जब कि व्यकितत्व हृदय को,😊
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ध्यान दीजिए
अपनी उम्मीदों के तीर को
एक म्यान दीजिए
एक दिन आकाश छेद ही लोगे
पहले मेहनत की ख़ुद को
एक कमान दीजिए
कोई ढाल न बन सकेगा
इज्ज़त की सबको
एक पहचान दीजिए
ध्यान दीजिए :)-
न जाने कितने लोग कोरोना पर जोक्स, मीम और मज़ाकिया गाने बना रहे हैं और उससे कई ज्यादा लोग उन्हें शेयर कर रहे हैं। क्या कोरोना हँसी ठिठोली का विषय है? दुनिया भर में लोग मर रहे हैं, क्या यह मज़ाक की बात है ?
आज ज़रूरत जागरूकता फैलाने की है न कि बचकानी हरकतें करने की। हम केवल सतर्कता और आपसी सहयोग से इस महामारी को हरा सकते हैं... स्थिति की गम्भीरता को समझिये।
ज़िन्दगी को मज़ाक समझना बन्द कीजिये🙏🙏-
जिस जिस के दिल में मैं समाता जा रहा हूँ
अपनी बेश़र्मी का ज़हर पिलाता जा रहा हूँ
उठ ना सके मेरी तरफ़ किसी की बुरी नज़र
ख़ुद को ख़ुद ही बुराईयाँ लगाता जा रहा हूँ
क्यों किसी की खुश़ी को मेरा ग़म करे उदास
एक हादसा समझ सब मैं भुलाता जा रहा हूँ
जिसके पास गया उसने प्यार से अपना लिया
धोखे से सबको पत्थर दिल बनाता जा रहा हूँ
कभी कभी कुछ ध्यान ही नहीं रहता कौन हूँ
औक़ात अब अपनी इतनी गिराता जा रहा हूँ मैं
सबके क़रीब ही रहता हूँ मैं हर घड़ी "आरिफ़"
मौका पड़ने पर अपना रंग दिखाता जा रहा हूँ
"कोरा काग़ज़" हूँ जिसमें कोई एहसास नहीं होते
बेवजह मैं अपनी झूठी कलम चलाता जा रहा हूँ-
लेखन वो एक पंक्ति में जो वास्तविक सत्य
को अर्थ सहित आनंद मैं परिभाषित कर दें-
खुद को एक बार मिटा के, खुद को, खुद में जगा लो!
आत्मा निंद्रा में है तुम्हारी, उस को तुम जगा लो!
जीवन को नहीं पाया तुमने, जन्म शरीर का हुआ है!
जीवन का जन्म, अभी बाकी है!!
जब तक ध्यान को जीवित तुम, खुद में ना किए हो!
तब तक जीवन को जीना, शुरू ही कहां किए हो?
मनुष्यता कहां है? इस धरती पे, सब मशीन बने हुए हैं!
ध्यान को जो पाया है, वही तो मनुष्य में श्रेणी पाया है!
मानव जन्म से कहां कोई? मनुष्य तो कर्मों से होते हैं!
कर्मों ध्यानो से ही हुआ है! ध्यान बचा ही कहां है?
गुरु जो है इस धरती पे, वो सिर्फ भ्रम फैला रहे हैं!
वह गुरु ही है कहां अब? जो ध्यान में ज्ञान को विकसित करते थे!
अब खुद को, खुद ही गुरु बनाना है! खुद से खुद को जगाना है!
पा कर खुद को, उसको पाओगे, जिसको दर-दर खोज रहे हो!-
ध्यान मुक्ति का स्रोत है
ध्यान है स्व का ज्ञान
जाननीहारा ब्रह्म है
जान सके तो जान
ध्यान मोह का अंत है
ध्यान है तम का नाश
ध्यान हीं सच्चा सोम है
उस ब्रह्म का इसमे वास
शत्रु मित्र सब स्व में है
जगत है स्व में व्याप्त
सभी ज्ञान उस स्व में है
ध्यान से कर सब प्राप्त-
वो थी नादान,
जो समझ बैठी उनको फ़रिश्ते,
सात सालों तक,
यूं न्याय व्यवस्था में रोज़ पीसते पिसते,
चार को ही
मिली फांसी, वो भी घिसते घिसते,
एक ने चुना
खुद, मौत गालियों में रिसते रिसते,
बस ना *बालिग*,
सोच रहा ये सब हंसते हंसते,
"आख़िर जाना है फिर से ये सब ठंडे बस्ते"...
Penned by : Utkarsh-