ग़र है राम पर भरोसा, तो फिर ख़ुदा पर भी होना चाहिए।
जब दोनों हैं रब, तो फिर तेरा मेरा भी कहाँ होना चाहिए।
प्यार और नफ़रत ही तो, हर अच्छाई बुराई की जड़ है,
प्यार है तो पराया भी अपना, नफ़रत में तो भाई भी दुश्मन पाइए।
जन्म एक सा मरना एक सा, भूख प्यास सब हँसी एक सी,
फिर क्यों इस कदर हो बसर, के सबकुछ सिर्फ़ अपने धर्म में चाहिए।
धर्म कोई अपनाने की वस्तु नहीं, और न ही दिखावे की चीज है।
ग़र यह आस्था की बात है, तो फिर धर्म को साधना भी चाहिए।
लोग अक्सर कहा करतें हैं, के धरम आपस में जोड़ा करतें हैं ।
ये सच है लेकिन एक शर्त है, के धरम में कट्टरता नहीं होनी चाहिए।
-अदंभ
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