पवन अरूदिया✔️   (कुमार पवन)
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Joined 28 April 2019


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कभी अपनी मां को भी घुटनों के बल पर गिरकर प्रपोज कीजिए

महबूबा की तरह मां कभी बेवफ़ा नहीं होती

I love you MAA❤️

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"इन्सान" कम थे क्या,
जो अब "मौसम" भी "धोखा" देने लगे !

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Celebrating the life and works of the great poet MirzaGhalib on his Birth Anniversary.

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अजब द्वंद है
अंतर्मन क्षुब्ध है
खिले प्रकृति सा
आज मौन स्तम्भ है
गहराई सांसो की
आज चढ़ती बहुत है
किसके लिए इतना
मन मौन-स्तम्भ है
चहक ख़ामोशियों में
आज हुई तब्दील है
पल में नभ,आकाश
पल में धरा, धराशाही है
अंतर्मन की जीवन मे
गहराई अथाह अघोर है
अंतर्मन खामोश हो
करता कितना शोर है
ये मन करता कितना शोर है

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जिन्हें मैं अपने समझ रहा था,
उन्होंने ही सिखा दिया कि अपना कोई नहीं....

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किसको डरा रहे हो पानी की बौछारों से,
हम तो रोज कुल्ला करते है ट्यूबेल की धार से...

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त्योहारों की शुभकामनाओं का असर इस कदर छाया है...
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तबियत कैसी है का जबाब भी same 2 u आया है 😅😂

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लेकिन खुद के अंदर पानी नदी का रखो...

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पूरे दिन की थकान कम करने के लिए सोना
भी जरुरी है...


शुभ रात्रि !!

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जाग-जाग कर आँखे लाल-काली
भरता लगता जीवन खाली
ऐसे में ख़ुशख़बरी की बौछार कहाँ से लाऊँ मैं
सुखन समेटे असीमित त्यौहार कहाँ से लाऊँ मैं ?

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