प्रथम पुज्य मंगलकरण,गौरी सुत गणेश।
कोटि नमन स्वकारियौ,ब्रम्हा,बिष्णु महेश ।।
हम अकिंचन पातकी,नहि बुद्धि नहि ज्ञान।
नहि जानिय प्रभु पुजयक विविध विधान ।।
नहि अक्षत नहि चानन,नहि कर में अहि पान ।
नहि पुष्ष रौली मौली ,नहि वस्तु कोनो जेआन।।
उर में भरि आनल प्रभु,श्रद्दा सुमन अनेक ।
चरण में अर्पित करिअ,राखिय हमर स्नेस।।
हम अनाथ दुर्बल बहुत,अहां सबल भगवान।
सभ विघ्न हरण कय,ऋद्धि सिद्धि दिअ नाथ।।
द्वार अपनेंक ठाढ छी,हम दीन - हीन लाचार।
कर बढाय उठा लिअ,"संजीब" रहल पुकार।।
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