अभी ज़रा सी आँख लगी थी मेरी थक हार के
मेरे चाहने वाले कंधा देने के लिए खड़े हो गए।-
जो लोग समाज में सभ्य होने की डींग मारते हैं
वो लड़की होते ही ढकोसलों के सींग मारते हैं।-
मन में मैल और ज़ुबा पर मिश्री घोलते है लोग
सच कितने दोगले होते है लोग।-
चाहे जितना भी रहें हम ताम-झाम से दूर
न जाने क्यूं फिर भी गले पड़े झाम मेरे खूब
करती हूं कोशिशें इन
झाम के झमेंलों से रहूं कोसों दूर
क्यूंकि इन सब में
ज़िन्दगी रही है मेरी डूब-
दोगलों की बस्ती में अपने अपने डेरे हैं
ये तेरे मुँह पे तेरे और मेरे मुँह पर मेरे हैं-
सच पै छाया अँधेरा काला
सफ़ेद झूठ चमक वाला
जो सच जानकर भी झूठ का साथ दे
उसकी नीयत धूसर है लाला-
जरा संभल कर दिखाना
ज़ख्म लोगों को इस ज़माने में
यहां हर शख़्स की मुट्ठी में नमक रक्खा है-
मन ही मन आती है हंसी ,
कभी गुस्सा आता रहता है।
जब कोई पीठ पीछे चलाते छुरियाँ,
सामने हमदर्द बना रहता है।
हर बात को ऐसा दिखाते है ,
जैसे हो सच्चा मीत यही ।
करते हर दम चुगली और
गाते है बुराई के गीत कहीं ।
चंद बाते झूठी तारीफ की करके
दिखाते है वफादार हैं ।
समझते है औरों को बुद्धू और
खुद जैसे समझदार हैं ।
सब आता है समझमे हमको,
कौन कितना मददगार है।
हृदय विदारक बातें नहीं करते हम ,
ये हमारे संस्कार है।
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जिंदगी बहुत खूबसूरत है
खुदा की पनाह में
जिंदगी बहुत बदसूरत है
दोगले इंसान की निगाह में-