यह रचना है स्त्री की जिसे ईश्वर ने बड़ी सुंदरता से बनाया है
बाहर से अत्यंत नाज़ुक किन्तु अंदर से मजबूत बनाया है
बड़ी ही विनम्र सुशिल पारदर्शिता से भरी जिसकी काया है
ये दुहिता है अपराजिता है इनमे माँ काली भी साया है
हाँ यह नारी है जिसके ह्रदय मैं सारा ब्रह्माण्ड समाया है..-
जननी त्वया अहं
दुहिता कमर्थं जायते
नूनं पुत्र रूपेण
त्वयाहं जायते...। जननी...
मया निर्मितं भोजनं
पितुः गृहे तु स्वाद्यते..
किंतु तदैव भोजनं
पतिगृहमास्वाद्यते...।जननी...
तव गृहं भ्रातृजायाया
पतिगृहं श्वसुरजायाया
कथ!कुतः गमिष्याम्हम्
मम गृहं कुत्रायते...।
जननी त्वयाहं दुहिता
किमर्थं जायते...
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जो दो कुलों का हित सोचे वो दुहिता है
जो दुहिता का हित सोचे वो पिता है।
जो ससुराल के दुःख छिपाये वो दुहिता है
जो धुप में तप कर आह ना करे वो पिता है।
जीवन भर बून्द बून्द धन संजोये वो पिता है
उस धन को पल में न्योछावर करे वो पिता है।
जो पीहर से एक दिन अलग हो वो दुहिता है
बेटी को विदा कर जो छुप के रोए वो पिता है।
I MISS U DIDI AND PAPA LOVE U
SO MUCH...-
मेहंदी रचे दोनों हाथ.
पैरों में महावर भी साथ..
चूड़ियाँ पहनी चटख लाल..
होंठो को रंगती लाली लाल..
सुर्ख जोड़ा वो विवाह का..
छुपता नहीं रंग अल्हड़ उम्र का..
गूंज रहे वेद मंत्र, स्वर गूंजा
"स्वाहा" का...
क्या यही अंत है दुहिता के
"मुट्ठी भर स्वप्न" का..
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लाखों हजारों व्रत रखते हैं माएं अपने बेटे की भलाई के लिए,🙃
पर हम बाटियों के लिए कोई व्रत नहीं रखता है कोई,🙃,
बेटा बड़ा हो कर शादी करने के बाद जब सिर्फ अपने family के बारे में सोचता है,🤷🏼♂️
पर बेटियां बचपन से ही मा बाप का साथ देते हैं,,❤️🔥,,
शादी करके ससुराल जाने के बाद भी बेटियां दो कुल की भलाई के लिए सोचते हैं,
इसी लिए वो दो कुल का हित "दुहिता" कह लाते हैं,,😊💙,
फिर भी हम बेटियों को यहां समाज में सुकून से जीने नहीं दिया जाता है,,🥲-
दुहिता - बेटी, पुत्री
किसी ने कहा जो पिता का धन दुहती हो इति दुहिता
किसी ने कहा जिसे दूर करने में भलाई हो इति दुहिता
लेकिन इसका एक मतलब ये नही हो सकता
"जो दो कुलों का हित करने वाली हो इति दुहिता"
हालांकि ये हिंदी और संस्कृत के व्याकरण से गलत हो सकता है लेकिन मन का व्याकरण भी कुछ होता है..
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रत्नाकर आहे खारा,
जाणले तिनेही.
तरी मधुर जल,
अर्पिते त्यास ही सरिता ..
जोडीदारास अपुल्या..
सर्वस्व समर्पिते त्यास..
स्त्री ही खरेच दुहिता.-