QUOTES ON #दावत

#दावत quotes

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25 JUN 2020 AT 14:13

आज चार कंधों पर बैठकर तसल्ली मिली
दावत ख़ुदा के यहाँ जान जाने पर मिली

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6 FEB 2020 AT 19:03

चार कंधों पर बैठकर भी तसल्ली ना मिली
दावत खुदा के यहाँ जान जाने पर मिली

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16 AUG 2017 AT 14:05

हिंदी उर्दू मिला कर हर शब कुछ पकाता हूं
आइये दावत-ए-इश्क़ पे मैं आपको बुलाता हूं।।

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21 JAN 2018 AT 14:15

दावत तो मैंने ख्वाबों को दिया था मगर
ख्वाहिशों ने मुझे जमकर लूटा
वफ़ा की ईंटों पर जो इश्क़ क़ायम हुआ था
धोखे की नमी से वो इंच इंच टूटा

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3 JUN 2020 AT 11:43

दावत
(हास्य)

एक साव जी थे।नाम था सूई साव। उनके पुत्र का नाम दर्शन साव। पिता सूई साव अपनी कंजूसी के लिए विख्यात थे। घर में जब भी किसी अवसर पर भोज भात होता तो नाम के अनुरूप सूई से घी परोसते। शायद उनके पिता ने अपने बच्चे का नामकरण इसी उद्देश्य से किया हो। सूई में धागे के लिए जो छेद बना रहता बस उतना ही घी...एक बूंद से भी कम....ऊपर से आलम यह कि भोज समाप्ति पर दुखी बैठते कि घी में अच्छा खासा खर्च हो गया।

एक दिन सूई साह चल बसे। रिवाज के मुताबिक़ बेटे ने श्राद्ध कर्म किया। मोहल्ले के लोगों ने मन ही मन सोचा कि कंजूस बाप चला गया अब बेटा भात पर कम से कम चम्मच भर घी परोसेगा। पर लानत है उस बेटे पर जो बाप से आगे न बढ़े। बेटे ने घी का कटोरा लिया और पंगत में बैठे खाने के लिए तैयार लोगों को घी दिखाते हुए एक कोने से दूसरे कोने चला गया पर दिया नहीं। एक बुज़ुर्ग ने टोका, 'दर्शन, यह क्या...भात पर घी डालो। तुम्हारे पिताजी तो देते थे...भले ही सूई से'
दर्शन ने जवाब दिया,
'सूई सा के गइल चभाका, अब दरसन के बारी बा'
(सूई साव की गई दावत-ए-मस्ती, अब दरसन की बारी है)'😊

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13 MAY 2020 AT 19:34


# दावत #

दस-पंद्रह साल पहले, अपने शहर में ही परिचित के बेटे की शादी थी। समारोह-स्थल छोटा और मेहमान कुछ ज्यादा ही हो गए थे।खाते समय इतनी भीड़ हो गई कि भगदड़ की -सी स्थिति उत्पन्न हो गई। मेरे ननदोई ने कहा कि खाने की फ़िक्र छोड़ कर, अपने गहनों की फ़िक्र करो। यहां कुछ भी हो सकता है।खाना तो नहीं मिला, मगर दूसरों का खाना कपड़ों में गिरने से, साड़ी जरूर गंदी हो गई थी। फिर बिना खाए ही हम घर आ गए और खिचड़ी बनाकर खाई।

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21 SEP 2017 AT 23:30

कुछ यूँ मेरी क़लम की कमाई हैं,
जो किसी ग़रीब की दावत के तो काम आई हैं।

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21 SEP 2017 AT 23:52

तलाशते हैं, पत्थरों को ज़मीन पर बैठकर,
करते हैं, दावत का इंतज़ार भूख़ की आशा में।

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22 JUN 2017 AT 22:24

बात यही है की बात करता हूँ
अपनो से ज्यादा परायों की बात करता हूँ

जो ना समझे है कभी
उनसे समझ की बात करता हूँ

पी नहीं जिसने मय कभी
उनसे महफिल ए दावत की बात करता हूँ

मंज़िल राह में राही तो है बेहद
शब ए शहर में आकर अब्र की बात करता हूँ

कभी ना मिला हूँ ख़ुद से यहाँ
ख़ुद को ना खोदूँ कहीं,आज ख़ुद से बात करता हूँ

बात यही की बात करता हूँ..!!

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15 JUL 2017 AT 17:11

चलो ना, आज दावत है वहाँ इश्क़ की
थोड़ा दर्द मिलेगा, थोड़ी ग़ज़ल पकेगी



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