अजीब दस्तूर है यहां
खुशियां दिखाओ, तो नज़र लगाते हैं,
ज़ख्म दिखाओ, तो नमक छिड़कते हैं।
जीतो तो जलते हैं लोग,
हारो तो हंसते हैं लोग।
सिर पर चढ़ाओ, तो तांडव करते हैं,
पैर पर रखो, तो तलवे सहलाते हैं।
तरक्की करो तो टांग खींचते हैं लोग,
विपत्ति में उपदेश देते हैं लोग।
इज्ज़त करो तो कमज़ोर समझते हैं,
ना करो तो घमंडी कहते हैं लोग।
सबों को ख़ुश करना मुश्किल है यहां,
अजीब दस्तूर है यहां ।।
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.........अजीब है.............ये.........दुनिया का दस्तूर........!!!
जैब भरा हो तो ठीक है नह हो तो आप ही का है कसूर-
सादगी से, मोहब्बत करना हमारी,
ये सजना-सवरना, फिजूल है....!
धूल जाएंगे, एक दिन, काजल हमारे,
ये आंखों की ही चमक, दस्तूर है......।।-
एक बेटी के बाप ने अपनी लाड़ो का व्याह किया
पाला जिसे वड़े प्यार से था उसको दूसरे घर में दिया
पिता की वह वेदना को कौन समझ पाता है
फिर भी दिल के टुकड़े को दूर कर खुशी से
दुनिया का दस्तूर निभाता है,
वो बेटी ही तो होती है जो
हर परस्थिति में ढाल पिता की वन जाती है
परेशानियों को अपनी भुलाकर
हर कदम पर साथ निभाती है
दवाई समय पर न लो अपनी
तब डांट डपटकर खिलाती है
जान द्दिड़कती है वो सब पर
सबको खूब हसाती है
कैसे विदा करे वोलो उसको
जिसके साथ इतना जीवन बिता दिया
दुनिया से यह दर्द छिपा कर
अपनी लाड़ो को उसने
भीगी पलकों से विदा किया।
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हदे इन्तेहा हो चुकी, सब्रे घूट पिया है तिरे हर इल्ज़ाम से, बेदाग है साबित
बेख़ौफ़ कह भी दे, जो शको शुबह है अज़मत पर लगाना दाग भी गुनाह है
मै तेरी जरूरत मगर,तू मेरी महोब्बत उंगली कोई और उठाए, परवाह नही
फर्क है,नादान दिल तुझी पर फ़िदा है तुझसे नोब्ते दलील हुई, हम तबाह है
इश्क़ हो अगर, शक की गुंजाइश कहाँ है खबर, क्या हुआ यूँ ज़िद का असर
खैर, तिरा ये सितम भी हम ने सहा है ज़हनोदिल बेज़ार है,ताँ उम्र रुसवा है
तकरीर मेरी, बेअसर ही रही तुझ पर तोहमत-ए-वफ़ा नामुम्किन रही,राज,
बड़ी संजीदगी से ली, जो अफ़बाह है अब तू भी बता,क्या ये दस्तूरे वफ़ा हैं
Raj4ever
ख्याब बुनते रहे, अक्सर दीवारो- दर
उस घोरोंदे को किया तूने ही फ़नाह है
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जितने भी थे गुमाँ मेरे, सब चूर हो गये,
वो हाथ मेरा छोड़ के मसरूर हो गये।
जला के मारना, उनके शहर का दस्तूर था,
बस हम भी बेनिशाँ, बा-दस्तूर हो गये।
जो लोग मेरे ज़ख़्मों के मरहम भी थे दवा भी,
आज वो ही मेरे दिमाग़ के नासूर हो गये।
इतने मिले हैं ग़म, के अब ग़म नहीं कोई,
गिरते-गिरते मेरे अश्क़ ही, रंजूर हो गये।
खुला-खुला रखा था, इन्हें चंडीगढ़ की तरह,
ये हालात भी धीरे-धीरे बैंगलूर हो गये।
मरते हुवे ग़रीब की तो कोई भी नहीं खबर,
और क़त्ल करते-करते वो मशहूर हो गये।
जाके शहर में बसे हैं, अपनों के पेट के लिये,
ये कैसी भूख है के अपनों से ही दूर हो गये।
इस आस में लिखे थे के कुछ आएगी ख़बर,
ये भी न हुई ख़बर के, ख़त ना-मंज़ूर हो गये।
चराग़ ज़िन्दगी के, अब बुझने को तड़प रहे हैं,
लगता है ज़िन्दगी के मुकम्मल उमूर हो गये।-
"रूठूं तो किससे रूठूं" ' कोई मानता ही नहीं ',
"रूठ भी जाऊं पर पता नहीं
कोई मनाएगा भी या नहीं।"-
बदल रहें है ये दुनिया वाले
अजब दस्तूर होते जा रहें हैं
जिन्हे जितना दे रहा हूं इज्जत
वो उतने मगरुर होते जा रहें हैं-
कुछ अल्फाज कहे नही जाते,
कुछ इल्जाम दिए नही जाते,
दुनिया का दस्तूर है,
कभी-कभी बिना कुछ किये ही ,
इल्जाम है दिए जाते।
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