*पापा का बटुआ*
पूरे घर की रोटी का बोझ उठाता है, वो पापा का बटुआ
हर शाम खाली हो जाता है, वो आधा भरा हुआ बटुआ
वो छप्पर वाला घर मेरा, और उसकी भीषड़ गर्मी में
घूमने वाला पंखा लाया था, वो पसीने से सना हुआ बटुआ
दीवाली के कपड़े और होली की पिचकारी
हर साल नई लाता है, वो कोने से फटा हुआ बटुआ
मुझे बड़ा बनाने में, और खूब मुझे पढ़ाने में
खूब धूप में तपता था, वो भीतर से छिना हुआ बटुआ
कन्यादान तक वहीं था, पर विदाई के बाद मेरी
कूड़े में खाली पड़ा था, वो दो टुकड़ों में उजड़ा हुआ बटुआ
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