जो उड़ना चाहो, तुम किसी पंछी के समान
तो तुम्हारे 'पर' ना काटे जाए
जो लिखना चाहो' तुम अपना हाल-ए-दिल
तो तुम्हें पंक्तियों के नियमों में ना बांँधा जाए
जो जिदंगी जीना चाहो, तुम अपने तरीके से
तो तुम्हें 'तोहमतें' ना थौपीं जाए
जो मोहब्बत करना चाहो, तुम किसी से
तो तुम्हें 'बद्चलन' ना कहा जाए
ऐसा "समकक्ष पायदान" तो हो...
जहांँ तुम्हें किसी सीमाओं में ना बाँधा जाए..!
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