लम्बे अरसे बाद आज फिर गाँव आना हुआ..
मिट्टी की सोंधी सुगंध मेरे जहन में अभी ताजा है,
ऊबड़ खाबड़ सड़कों पर गड्ढों के झटके फिर महसूस किए,
पड़ोसी काका के अलाव वाले चर्चा की खुस्फुसाहट सुनाई दी,
घर के आँगन में ढलानों के साथ बचपन कहीं लुढ़कता नजर आया,
कमरे में दरवाज़े के पीछे का आधा बचा स्टीकर जैसे नाराज़ है मुझसे,
भाई बहनों के साथ वाला शरारती खेल और प्यारी मस्ती अभी जिन्दा है,
दादी का गुस्से वाला प्यार दादाजी की सीख कहानियों की सौगात मिली,
रसोईघर से मनपसंद खाना बनाते हुए माँ पुराना गाना गुनगुनाती दिखी,
शाम की ठंडी हवा ने जबरन ही आकर्षित किया छत पर टहलने को,
घर के अगल बगल का नजारा थोड़ा सकुचाते हुए हौले से मुस्काया,
हो सकता है हम पहले जैसे नही दिखते हैं क्योंकि बड़े हो गये हैं,
पर सच कहूँ तो कुछ भी भूले नहीं और भूल भी नहीं सकते,
हमें यहाँ का बिताया हुआ एक एक पल याद है!....
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