Pratiksha Mishra   (वाग्धारा)
388 Followers · 10 Following

Joined 15 January 2020


Joined 15 January 2020
4 JUL 2023 AT 12:45

लम्बे अरसे बाद आज फिर गाँव आना हुआ..
मिट्टी की सोंधी सुगंध मेरे जहन में अभी ताजा है,
ऊबड़ खाबड़ सड़कों पर गड्ढों के झटके फिर महसूस किए,
पड़ोसी काका के अलाव वाले चर्चा की खुस्फुसाहट सुनाई दी,
घर के आँगन में ढलानों के साथ बचपन कहीं लुढ़कता नजर आया,
कमरे में दरवाज़े के पीछे का आधा बचा स्टीकर जैसे नाराज़ है मुझसे,
भाई बहनों के साथ वाला शरारती खेल और प्यारी मस्ती अभी जिन्दा है,
दादी का गुस्से वाला प्यार दादाजी की सीख कहानियों की सौगात मिली,
रसोईघर से मनपसंद खाना बनाते हुए माँ पुराना गाना गुनगुनाती दिखी,
शाम की ठंडी हवा ने जबरन ही आकर्षित किया छत पर टहलने को,
घर के अगल बगल का नजारा थोड़ा सकुचाते हुए हौले से मुस्काया,
हो सकता है हम पहले जैसे नही दिखते हैं क्योंकि बड़े हो गये हैं,
पर सच कहूँ तो कुछ भी भूले नहीं और भूल भी नहीं सकते,
हमें यहाँ का बिताया हुआ एक एक पल याद है!....

-


9 NOV 2022 AT 19:58

धीरे धीरे वो अतीत बन जाएगा,
अफसोस!
खास जतन भी नही हुआ उसे वर्तमान बनाने के लिए..

-


23 JAN 2022 AT 20:40

अगर जायज ही होता,
मोहब्बत और जंग में सब कुछ!

तो,

राधा कृष्ण कभी बिछड़ते नही
और न ही महाभारत युद्ध चलता अट्ठारह दिन!

-


20 DEC 2021 AT 20:51

ये शताब्दी याद की जायेगी हिन्दी में नये पर्यायवाची शब्दकोश के लिए,
मैंने भली–भाँति पहचाना है, ताऊजी जिम्मेदारी, पिताजी समझौता और माँ त्याग का पर्याय हैं..

-


23 SEP 2021 AT 21:38

मेरी ख़ामोशी पे भरी महफ़िलों में तेरा यूँ बेचैन हो जाना,
कमाल का उदाहरण है इश्क और समाज में सामंजस्य का..

-


22 AUG 2021 AT 16:08

कुछ अजीज यादें जब जब आती हैं
अधिकारपूर्वक आँखों में नमी की सौगात छोड़ जाती हैं

-


2 AUG 2021 AT 21:09

जिम्मेदारी और समझौता इन्हें नही आवश्यकता गहन व्याख्या की,
अपने आप में ही ये प्रभावी अस्तित्व को मूक व्यक्त किया करते हैं,
मैं भी नही जाना चाहती इनके अधिक गहराईयों में,
परन्तु मेरे प्रारब्ध में समीप से साक्षात्कार लिखा है इनसे..

नही होना था इतना असमर्थ कि मन की व्यथा ज्यों की त्यों कह न सकूँ,
नही होना था इतना कठोर कि प्रायः द्वंद का दंश झेलना पड़े मुझे,
नही होना था इतना विशिष्ट कि हर कदम केवल अनुभव ही मिले,
नही होना था इतना गंभीर कि अवस्था भी एकदम सहम सी जाये,
नही होना था इतना विवश कि बिना मन के भी बात करना आवश्यक हो,
नही होना था इतना सहनशील कि निर्बाध खुल के रो भी न सकूँ,

मैं स्वतंत्र होना चाहती हूँ तमाम भारी भरकम भावनाओं के बोझ से,
हल्की फुल्की परवाह से भी तो दुनिया चलती है न ?

-


27 JUL 2021 AT 21:47

जंग से लगे स्मृतियों के रेल का फिर से सरपट भागने लगना,
सुबह होने की उहापोह में मानक से अधिक करवट बदलना,
करीने से सज्जित हो आइने में एकबार और देख लेने की हसरत,
रास्ते भर खुद-ब-खुद बातचीत का ऊलजलूल प्रारूप तैयार करना,
नियत स्थान पर आंदोलित हृदय लिए तेज रफ्तार सांसो को संभालना,

मुलाकात के पहले की इस जटिल प्रक्रिया के बाद,
जालिम वक्त हमारी मुलाकात को वक्त ही नही देता!


-


11 JUL 2021 AT 13:54

अनिश्चितता से भरे इस संसार में,
कान्हा! तू ही एक निश्चित सहारा है।

-


7 JUL 2021 AT 18:40

ख़्वाहिशों को मुल्तवी कर बाद में अश्कों में बहाया है मैने,
कमब़ख्त किस्मत ने गफलत में भी कभी रियायत न दी!

-


Fetching Pratiksha Mishra Quotes