तोड़ कर के रब ने,हमको अलग बनाया
जोड़ सके औरों को,लिखने का हुनर सिखाया
शब्दों में दे दी ताकत,और हमको कलम थमाया-
अरे! ये क्या,
तुम भी रोने लगीं,
क्यों? क्या हुआ तुम्हें?
क्या तुम भी करना चाहती हो?
मेरी माँ सी मोहब्बत
किसी खास इंसान से?
या खुद के लिए चाहती हो
मेरे पापा जैसा प्रेमी?
जो अनवरत तुमसे प्यार करे,
सुख-दुःख, सावन-पतझड़ सब में?
या इन कहानियों में तुम भी देखती हो
अपने भी माँ-बाबा का प्यार?
या फिर डरती हो आने वाली समय
में पीड़ा के ऐसे अनचाहे वार से,
जो झकझोर के रख देतीं हैं जीवन को?
खैर, जो भी हो,
पर तुम रोया मत करो!
मुझे अच्छे नहीं लगते
बिल्कुल भी तुम्हारे
फूल से चेहरे पर ये बहते आँसू!
फूलों पर जंचती हैं तो बस ओस की बूंदें,
गहरी बारिश तहस-नहस कर देती हैं,
इन फूलों का सौंदर्य, इनकी खुशबू!
चलो, अब जल्दी से हटा फेंको,
इस अनचाही धार को अपने रुख से!
चलो, ज़रा मुस्कुरा भी दो अब..!
तुम्हारे खिलते चेहरे पर ये आँसू
नहीं, बस मुस्कान जँचते है जाना!
ठीक वैसे ही फबती है ये हँसी,
तुमपर जैसे कि चाँद पर शब..!🖤-
जब गुजरती हूं उस राह से ।
अक्सर दबे पांव ही चलती हूं।
सन्नाटे में चीखती हुई ।
वह आवाज आज भी महसूस करती हूं।
डर लगता है ।
फिर भी थोड़ा और संभल कर ही चलती हूं।
तेरे जैसे मुझे भी कोई रास्तें में ना रोक ले।
इसलिए इधर-उधर तेजी से अपनी आंखें दौड़ा लेती हूं।
मन में एक कसक आज भी बरकरार रहती है।
काश उस दिन रोक लिया होता तुझे ।
काश यूं अकेले ना जाने दिया होता तुझे।
पर नाज़ है मुझे तुझ पर।
सलाम है मेरा तेरी हिम्मत पर।
रात का अंधेरा हो या दिन का उजाला हो।
लड़ना तुझे बखूबी आता है।
उस दिन तू लड़ी और जीती भी है।
लड़ाई तेरे अपने अस्तित्व की रक्षा की।
जीत तेरी अस्मिता की रक्षा की।
बस तेरी यही हिम्मत मेरा भी हौसला बनी है आज।
लड़ाई कितनी ही मुश्किल क्यों ना हो।
जीत की डगर कितनी ही काटों भरी क्यों ना हो।
तेरी तरह मैं भी।
रात के सन्नाटे को चीरते हुए।
आगे बढ़ कर अपनी मंज़िल तक ज़रूर पहुंचूंगी।-
कुछ दौलत के दीवाने हैं।
कुछ ताकत के दीवाने हैं।
सीरत सीरत जो कहते हैं,
सब सूरत के दीवाने हैं।-
ज़िन्दगी के संघर्ष समझ नहीं आते
पर उसके मायने होते हैं,
ज़ब कभी हम अपने बीते कठिन दिनों को देखते हैँ,
उस वक़्त ही यह समझ आता हैं की उनके कारण ही हम आज यहाँ तक पहुंच सके हैं,
तब हम अपने संघर्षो को सलाम करते हैं,
चुनौतियाँ केवल तोड़ती नहीं हैं,
हमें मजबूत भी बनाती हैं...-
हर रोज लिखने की, ताकत नहीं है मुझमें
मेरा हर शब्द लहुलुहान है-
तुम सच लिख नहीं सकते तो पढ़ते ही रहो ,
हकीकत से मुलाकात की ताकत बनी रहेगी|-
मै वो भरोसा हूं
जो तुम्हें, तुम्हारी छिपी ताकतों से
रुबरु करातीं है..।-
तुम्हारी पलको के नीचे अंधेरा काफी है
कई राते जाग कर बितायी होंगी
कई सवेरो से पहले जागे होगे
कई शाम समेटी तन्हाई होगी।-