कभी तहजी़ब सिखाते थे ज़नाब, हमें मोहब्बत़ की।
मगर आज, खुद भूल गए, तहजी़ब, अपने मोहब्बत़ की।।-
तहज़ीब तो यही है कि ख़ुशी से विदा करूँ तुझे
पर 2020 सालों का इकट्ठा दुःख दिया है तूने-
उफ्फ ! कितना नापते तौलते हो,
खुद को क्यूँ न्यायाधीश समझते हो?
उसकी सोच,इसकी सोच,मेरी सोच..
इसी में उलझे रहते हो?
निष्कर्ष क्या निकला,क्या ये बता
सकते हो ?
पूर्ण रूपेण कभी किसी को नहीं जान
सकते हो ..
बस,खुद के हिसाब से एक कहानी बना
लेते हो..
सच तो ये है, कि इंसान परिस्थितियों का
दास है ..
जब जैसा होता है वो उसी अनुरूप व्यवहार
करता है
तो एक काम करो पहले खुद को संभालो...
और ये नापने तौलने की आदत अपनी
बदल डालो...
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धाकड़ तो हम हैं ही जनाब...
पर जब लोग तहज़ीब से पेश ना आएं बस तब ..-
बड़ी तहज़ीब से
पेश आते थे,
जिंदगी तुझसे..
पर तेरी मेहरबानियों
ने तो हमे बदतमीज़
बना कर छोड़ा है..!!♥-
मैं शरीफों की तहज़ीब , तुम Born बदतमीज
मैं choice classy , तुम पूरे Messy-
इन हाथों ने जब से कलम उठाया है
अल्फाज़ों ने दिखाया है तहज़ीब का दायरा-
जिस्म ढक लेने से ही महज़ पर्दा नहीं होता ,
कुछ निगाहों का एहतराम भी जरूरी है ! ✍️-
लहजा अदब का बरकरार रखा कीजिए जनाब
गुस्सा अपनी जगह है तहज़ीब अपनी जगह-