लोगों ने सुबह से पूछ-पूछ कर परेशान कर दिया था मुझको 'अभि' कि कमबख्त मुझको आख़िर आज हुआ क्या है?
उसने बस एक बार पूछा हाल मेरा और सब ठीक हो गया, अब क्या बताऊँ कि इस दर्द-ए-दिल की दवा क्या है?-
तबीब इस बात से कभी भी ख़ुश नहीं होता हैं कि मेरे जरिए इस मरीज़ को दुरुस्त किया गया।
बल्कि तबीब इस बात से अक्सर परेशान हो जाया करता है 'अभि' कि ये बीमार कैसे पड़ गया।-
मेरे दिल के हर दर्द का जो तबीब है,
हमसफर है मेरा, वही मेरा हबीब है।-
तबीब की सारी कोशिशें नाकाम होने लगी है
इसको क्या ख़बर इश्क़ के रोग की दवा नहीं होती।-
कमबख़्त सादगी पे अब मरता कौन है
इश्क़ पहले जैसा....अब करता कौन है
इस ज़मीं पर तेरी साख अब रही नहीं
रहने दे ख़ुदा तुझसे अब डरता कौन है
तबीब भी लगते हैं तबीयत के मारे सारे
ग़ैरों के ज़ख़्म यहाँ अब भरता कौन है
मैं ख़ामोशी से सुन लेता हूँ ताने सब के
बाद में मेरे अन्दर मुझसे लड़ता कौन है
मैं तो बेख़बर.. सो जाता हूँ रोज़ थक कर
सारी रात फिर ये करवटें बदलता कौन है
©technocrat_sanam-
इश्क़ के मरीज़ों को दवा क्या तबीब की
इनकी तो फ़क़त एक शफ़ा सूरत हबीब की-