चंचल किरणें कर रही है अठखेलियां,
हुआ सवेरा हुआ सवेरा,
चहचहाते खग विचरण करते,
देखो नील गगन में हुआ सवेरा।-
मत दहक सूरज इतना
बता तू किस डाह में जल रहा है
बादलों को संग ले ले कि
तेरा तन भी अब ठंडक को मचल रहा है-
साल भर की
कड़ाके की हाड-कंपाती सर्दी,
निर्दयी-निष्ठुर-निर्जीव-उजाड़ पतझड़,
भीषण-झुलसाती-जानलेवा गर्मी-सूखा-लू,
बेतरतीब बरसात-ओलों-बाढ़ के बाद
जो सुक़ून वाला एक महीना आता है ना
वो महीना
जो गुलाबी सी,
कुछ रूमानी सी,
हल्की-हल्की सी
ठंडक लाता है ना
कुछ उसी महीने सी हो तुम
सुनो! मेरा 'नवम्बर' हो तुम!
-साकेत गर्ग 'सागा'-
लिपट लिपट के जो सोता था
मैं तो उसी के पास होता था
तमाम रात थी और थी ठंडक
न वो सोता,न मुझे सोने देता था
जब बात आती थी गले लगाने की
बाँहे खोल के उसे आग़ोश में लेता था
लिटा के सीने पे हम-दम को प्यार से
मैं गुदगुदाता,वो हँस हँस के रोता था
हुआ जो ख़ुमार उसकी खूबसूरती का
सुब्ह को मुँह शराबों से धोता था-
खिलेगा कोई गुलाब बाग में आज।
पनप रही है कविता दिमाग में आज।
सिहर उठी थी धूप छूकर आज उसे
है इतनी क्यों ठंडक आग में आज?-
आज ठंडक सूर्य के प्रकाश में है
लगता है वो भी धूप की तलाश में है-
उसके कदम रखते ही बारिश तो आई होगी,,,,
गर्मी से तप रही ट्रेन को ठंडक पहुंचाई होगी,,,,-
Aaj phir kadakti sardi mei Garmi ka ehsaas huya hai
Lagta aj phir tere yaado ne dil pe dastak se di hai !!-