तुम क्या मानो,
अपने ईश्वर से दूर रहना,
बात बात पर लोगो के ताने सहना।
पूरी रचना अनुशीर्षक में
मैं किसी को आहत नही करना चाहता हूं।
हमेशा की तरह स्नेह और आशीष का प्रार्थी रहूँगा।-
ये मेरे जूते भी जानने लगे हैं मेरी मोहब्बत के बारे में
उनके आते ही सज़दा करने के लिए फीते खुल जाते हैं।-
पिताजी के जूते
" पिताजी मुझे ये रंग बहुत पसन्द है।
लेकिन ये मेरे पैरों में क्यों नहीं आते? "
मासूमियत की चाशनी में लिपटे सवाल
शांत जल समान पिता में मिश्री बनकर घुल रहे थे।
पिता ने गोद में उठा कर कहा-
" तुम्हारे दादाजी के पैरों के नाप के है
अभी मेरे पैर भी छोटे है इन के लिये।
तुम थोड़े बड़े हो जाओ तो रख लेना इन्हें। "
आज तीस साल बीत गये।
आज मेरी नन्ही कली ने यही सवाल किया।
" पापा मुझे आपके जूते पसन्द है।
ये मेरे पैरों में क्यों नहीं आते? "
मैंने भी उसे गोद मे उठा कर कहा-
" गुड़िया ये तेरे दादाजी के जूते है
और अब जा कर तेरे पापा के पैरों में आये है।
तीस साल तक कोशिश की है,
इस लायक बनने के लिये।
हर साल, हर महीने, हर दिन, हर पल
पापा ने बहुत मेहनत की, कई वक़्त तक
सीखा और जाना कि पैरों के नाप कैसे
तेरे दादाजी के पैरों के नाप के बराबर हो।
कई साल के बाद अब जा कर मेरे पैरों में आये है ये।
जब तू बड़ी होगी तो तू रख लेना इन्हें। "
मेरी गुड़िया बोली-
" मैं भी बहुत मेहनत करूँगी, सब सीखूंगी - सब जानूँगी।
जब बड़ी हो जाऊंगी तो मेरे पैर भी बड़े हो जायेंगे।
पापा! तब तो ये जूते मेरे पैरों पर आ जायेंगे।"
मैंने कहा- " ज़रूर बेटा! तब आ जायेंगे तुम्हें
ये पिताजी के जूते। " (गीतिका चलाल) insta-@geetikachalal04-
जो सुकून नही मिला मुझे विदेशी जूतों में ,
वो सुकून मिला मेरी बूढ़ी माँ की हवाई चप्पलों में !!-
नये जूते छोड़ बाहर, जाता जब हूँ मन्दिर में
मंडराता है मन उन पर ही, किसी बुरे साये सा।-
कब ये जूते यहाँ से वहा चले गए
कब हमारा बचपन जवानी मे
तपदील हो गया
सब वक़्त का खेल लगता है
जो उम्र का स्कोर बड़ा रहा है...-
आज रास्ते में इक मोची वाले को देखा
माथे पे गहरी लकीरें चेहरे पे झुरिर्रयाँ
कपड़े भले फटे पुराने पहने थे उसने
मगर सामने रखे जूते बेहद चमक रहे थे
-
जूतों की महिमा
जूते उठाना
जूते चुराना
जूते लगाना
जूते चलाना
जूतों की माला
जूते पहनाना
जूते बजाना-