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उसके जूते चमक रहे थे। कपड़ों की चमक भी देखने लायक थी। आँखों में भी एक अलग सी चमक थी। मगर उसकी दृष्टि जहाँ गड़ी थी उससे उसकी मन की मलिनता साफ दिखाई दे रही थी।
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राजनीति में रीत ये, हर दिन बढ़ती जाए
अपने हित का न मिले, जूता देय टिकाए
दौर चुनावी चल रहा, कहीं चूक न जाए
ढीला जूता राखिये, तुरत काम दे जाय
चमड़े का जूता भया, राजनीति का अस्त्र
पलक झपकते मारिये, ज्यों हो जाएं त्रस्त
ऐसा जूता मारिये के भीड़ जमा हो जाय
मार मार जूता फटे, सो नेता कहलाए
कुट कुट के भए अधमरे,जरा सरम न आये
कुर्सी के रहे लालची, सौ सौ जूते खाए
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आँको न लोगों को उनके जूतों या कमीज से
इंसान की परख तो होती है उसके तमीज से-
जो तमीज़ की बात हो, तो ये डिग्रीयां भी बड़ी फ़रेबी हैं
इंसान चाँद पर भी चला जाये,
पर तहज़ीब नही खरीद सकता।-
कुछ बाते है जिसे गौर से समझना ' अनूप '.....
अंधेरो में वारदाते आम बात है ,
यहाँ दिन में ही होती है लूट ...
ख़ामोश है तो कोई बात नहीं शिकायत
के दो लफ्जो से लोग हो जाते है रूठ ...
किसी का बच्चा भूखे पेट सो जाता है ,
किसी के कुत्तो को मिलती है ब्रेड , माखन और जूस..
आर्थिक स्थिति देखती नहीं सरकार ,
जातिवाद के नाम पर मिलती है छूट...
बड़े शोरूम में बेचे जाते है जूते ,
फुटपाथों पे बिकती है शिक्षा की बुक ....
करोडों में नीलाम होता है नेता की पहनी सूट ,
सूना है कचरे में मिली थी शहीदों की वर्दी और बूट...-
अच्छा लगता है मुझे
चलना नंगे पैर।
जाना हो मंदिर
या हो सुबह की सैर।
चप्पल जूतों से मुझको
नहीं है कोई वैर।
पर पैरों की आज़ादी
की भी रखनी होती खैर।-
मत आँको मेरी हैसियत मेरे जूतों से, तुमने मेरे छाले देखे ही कहाँ हैं
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