ढ़लता सूरज तो खुबसुरत हैं,
पर तु इससे इश्क़ ना लड़ा,अवन
इसके ढ़लने से कितने लोग ढ़ले,
और ये बात भी अलग हैं,
कल कितनों की उम्मीद बन कर फ़िर आयेगा ये!
खै़र छोड़ो ये सब बातें,जो हैं की,
तुम कहते हो तो ठीक ही कहते होगें,
हर ढ़लते सूरज के साथ मैं ज़ाया हुआ,
और तुम नुमायाँ हुये!!
-