अधूरा रहा वो सफ़र जो हमने साथ चलने के लिए देखा था, अधूरी रह गई हर ख्वाइश जो हमने साथ पूरा करने का सोचा था, अधूरा रह गया हमारा रिश्ते का मुकद्दर जो अनंत के लिए चुना था, दिल्लगी होती हमारे दरमियां तो शायद तकलीफ़ ना होती बिछड़के, इश्क़ था इसलिए अधूरा होकर भी यादें पूरा दिया।।
हर सहर तुम्हारी यादों की किरण में दोपहर तपस में , सांझ तुम्हारी ख्यालों के अंधियारे में निशा की तो रंजिश यही होती है वो ग़मो की चादर हमेशा ओढाके छोड़ देती है मुझे अकेला जीते जी मरने के लिए।