वे लिखते हैं हिंदू-मुस्लिम,
ठाकुर, बामन और पठान।
सब इक दूजे पर हँसते हैं,
जैसे ऊदई वैसे भान।
धरम-जात औ' वंश घराने,
बस इतनी सबकी पहचान।
जी करता है काट गिराऊँ,
धर्म-जात वाली चट्टान।
कागज-पत्तर फाड़के फेंकूँ,
सब बँटवारे के सामान।
नाम के खाने में लिख डालूँ,
केवल और केवल 'इंसान'।-
अच्छा है ओ हवा!
जो तेरा कोई मज़हब नहीं है,
तेरा भी गर मज़हब होता
कितनों का दम तो यूँ ही घुट गया होता।
बरसती हुई यह बारिश भी
अगर मानने लगती जातियों को
न जाने कौन-कौन फिर
प्यासा ही मर गया होता।
कितने परिंदों के घोंसले
उजड़ते रोज़-दर-रोज़,
जो इन दरख़्तों ने अपना धर्म
हम-तुम - सा चुन लिया होता।
नहीं हैं सरहदें तो छाया हुआ है वो,
बँटा होता तो आसमाँ
ज़मीं पर बिखर गया होता।-
परे होकर...
सांसारिक रीतिओं से
जातियों से,धर्मों से,
विधियों, भाषाओं औ'
सीमाओं से...
निकट हो जाते हैं प्रेमी ईश्वर के।-
पड़ गई इसकी भनक थी ठाकुरों के कान में
वे इकट्ठे हो गए थे सरचंप के दालान में
दृष्टि जिसकी है जमी भाले की लम्बी नोक पर
देखिए सुखराज सिंग बोले हैं खैनी ठोंक कर
"क्या कहें सरपंच भाई क्या ज़माना आ गया
कल तलक जो पाँव के नीचे था रुतबा पा गया
कहती है सरकार कि आपस में मिलजुल कर रहो
सुअर के बच्चों को अब कोरी नहीं हरिजन कहो"-
लड़ रहे थे सब तो मैंने पूछ दिया कि बात क्या है ?
भीड़ ने तुरंत पलट कर पूछा कि मेरा जात क्या है ?-
'ख़ाक' लड़ रहे लोग सब, पूछ पूछ कर ज़ात
राम , ख़ुदा हैरान हैं, नाज़ुक हैं हालात।।-
मेरा खाना खत्म हो चुका था
लेकिन मेरे कॉलिग्स के बातों ने
मुझे अबतक टेबल से बांधे रखा था
हमने सैकड़ों मंदिर खोए
दर्जनों राज्य तबाह हो गए
मासूमों का कत्तलेआम हुआ
लेकिन हमने कभी हिम्मत नही खोया
तुम क्या कहते हो मित्र इसपर...
कितनी विडंबना है मंदिर खोने का
दुख राज्य खत्म होने का दुख सबको
है लेकिन इंसान खत्म हो रहा इसकी चिंता
नही,जरा बताओगे कौन से टेक्स्ट में जाति
आधारित बटवारा लिखा है, छुआछूत का
आडंबर विवेचित है?-
हमारे यहाँ 'हम कान्यकुब्ज ब्राह्मण हैं', 'हम कनौजिया ब्राह्मण हैं' का दम्भ भरने वाली एक जमात है। ये जमात कहती है कि इनकी पैदाइश विराट भगवान के मुख से है, जहाँ थूक भरा रहता है। फिर जो थूक के ठौर से जन्मेगा वह कहाँ तक थूकेलापन न करेगा।
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परिंदे को परिंदे से मिलाया जाए ।
हर संभव नुस्खे को आजमाया जाए।
बीच में सियार आंख मिचोली खेले अगर,
तो सामने आए हर सियार को सुलाया जाए।
ऐ आवाम मिलाकर इन परिंदों को ,
अपना-अपना इज्जत बचाया जाए।
'तुम' और 'मैं' की खेल खत्म करो,
अब बस 'हम' सब को बताया जाए।
परिंदे को परिंदे से मिलाकर !
पूरा जमाना घुमाया जाए।।-