आज जगाये रखतीं है मुझें अब सोने नही देती, अब ये जिम्मेदारियां मुझें किसी का होने नही देती, कितना रौब था जब पापा से अकड़ कर पैसे माँगते थे, अब जिम्मेदारी हिस्से पड़ी तो पापा के जगह की क़ीमत पता चली!
किसी को बचपन में ही क़ाबिल बना देती ये ज़िम्मेदारियाँ, तो किसी की काबिलियत रह जाती दबी इनके बोझ तले। कोई धर रूप 'माँ' सा, सूरज की भाँति चमकाता परिवार, तो किसी की चमक पड़ जाती है फीकी इनके तेज तले।।
इंसान अगर अपना नाम ज़िम्मेदारियाँ रख ले तो क्या बुरा है आखिर सबको इनके सिवा जिन्दगी मे और क्या मिला है जो निभाता है उससे पूछों सबको खुशी देने मे कितना मजा है जो नही निभाता उसके लिये जिन्दगी बस एक सजा है।
क़तरे ने ली है ज़िम्मेदारी दरिया होने की पत्ते ने ली है ज़िम्मेदारी दरख़्त होने की मत भाग तू तेरी भी कुछ ज़िम्मेदारियाँ हैं तू लेले ज़िम्मेदारी इंसाँ होने की
सुनकर ही बड़ा बोझिल सा महसूस होता है न? और जो इसे निभाता है सोचो उसे किन परिस्थितियों से होता है गुजरना. जिम्मेदारियां उम्र नहीं देखती. जिसके सर होती है उसे हर रोज पड़ता है खपना.
हमे ज़िम्मेदारियां का अहसास बचपन से आ गया अपना जीवन आगोश में कर लिया जीवन है कठिन जीना है मुश्किल जिम्मेदारी लेना परिवार को चलाना जिम्मेदारियों के बिना न मुमकिन
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