बदस्तूर जारी है ज़माने में जिसका ज़ुल्म-ओ-सितम,
हाँ, इश्क़ वो दर्द है जिसे कुछ लोग दवा कहते हैं !-
हम ढूंढते रहे जिनको सारे ज़माने में,
वो थे हमारे हर लफ्ज़ और फसाने में,
वक्त था बहुत दिल की बयां करने का,
गुजार दी, एक दूसरे को आज़माने में !-
तुम मुझे कभी दिल से
कभी आँखों से पुकारो
ये होठों के तकल्लुफ तो ज़माने के लिए होते हैं-
सोचा ही नही था मैंने ऐसे भी ज़माने होंगे
रोना भी पड़ेगा और आंसू भी छिपाने होंगे-
कभी यूँ भी मेरे क़रीब आ मेरा इश्क़ मुझको ख़ुदा लगे।
मेरी रूह में तू उतर ज़रा कि मुझे कुछ अपना पता लगे।
न तू फूल है, न तू चाँद है, न तू रंग है, न तू आईना।
तुझे कैसे कोई मैं नाम दूँ तू ज़माने भर से जुदा लगे।-
कुछ इस तरह से वो मुझे आजमाने लगे,
हर छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा दिखाने लगे।
किसी को समझना इतना आसान तो नहीं,
हर एक को समझने में ज़माने लगे।
जो पसंद हो वो किसी को नहीं मिलता गौरव,
क्या दिक्कत है?अगर तुम्हें भी नहीं मिले।
इन्हीं झूठी बातों से दे देते है खुद को तसल्ली,
अब दर्द कुछ-कुछ कम होने लगे।-
कैसे वास्ता रखूं उस ज़माने से भला और,
सुन कर के दर्द मेरा जो कहता है वाह वाह।
کیسے واستہ رکھوں اس زمانے سے بھلا اور،
سن کر کے درد میرا جو کہتا ہے واہ واہ۔-