जलियांवाला बाग का नरसंहार
भूला ना होगा कोई हिन्द वासी
जालिम डायर ने खेली जहाँ
नृशंसता के खून की होली
सौ वर्ष बीत गये पर आज भी वो
रक्तरंजित इतिहास दिल दहला देता है
अमृतसर की धरती कांप उठी थी
उन आग उगलती बंदूकों से....
वृद्ध मजलूम, बालक और
कोमलांगनाओ की चीखें
आज भी गूंजती होगी
उस जमीं पर... बिखरे होंगे
कितने मासूम जवानो के
क्षत विक्षिप्त शरीर उस जमीं पर
निर्ममता भी कांपी होगी
निष्ठुरता भी रोयी होगी
ऐसा मंजर देख कर
अनाम शहीदों की गिनती
मृत्यु भी न कर पायीं होगी
उन शहीदों की शोणित स्याही से
ये दर्द लिखा होगा इतिहास में
यूँ बलिदान व्यर्थ न जाएगा
सौगंध उठायी होगी वीरों ने
हिन्दूस्तान को स्वतंत्र करा
शहीदों को न्याय दिलाया होगा...
कोटिशः नमन उन शहीदों को
जिनकी आहुति से भारत
आजाद हुआ... एक नया सूर्योदय हुआ
कोटिशः नमन 🙏🙏
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जलियांवाला बाग में शहीद
हुए देश के वीरों को
तहे दिल से शत-शत नमन।🙏🙏🙏🙏-
बैसाखी का पर्व था वह, जिस दिन लहूं की होली अंग्रेजों ने मनाई थी ..
महिला, बच्चों, बूढ़ों तक ने, सीने पर गोली खाई थी
मानवता को शर्मसार कर जनरल डायर ने, 1650 राउंड गोली चलवाई थी ..
13 अप्रैल 1919 को अमृतसर में, मनहूसियत छाई थी...
इस घटना को बीते हुए 100 और 1 साल और हुए(101)..
उस दिन को याद कर " उधम सिंह " ने, जनरल डायर को मार दिया ..
स्वयं चढ़े फांसी पर, पर हम सब को जीवनदान दिया
हम सब को जीवनदान दिया....
वंदे मातरम्-
वो निहत्थे, निर्दोष गोलीयो के शिकार हो गये,
ज़बरन रॉलेट एक्ट के प्रतिकार हो गये,
हज़ारो मरे, सैकड़ों कुँए में कूदे,
यह देख, वीर ऊधम सिंह तैयार हो गये।-
आज का ही दिन था वो जब चारों ओर
मौत का मंजर फैला हुआ था दर्द भरी
पुकार में खोया हुआ था मेरा देश अब
आंसू भी सूख जाते हैं जब बात होती है
उस मंजर की, पढ़कर ही रोंगटे खड़े होते हैं
अब सोचो क्या बीती होगी उन पर तब
चीख भी चुप्पी साध ले ऐसा था वह वक्त
हम जरा सी परेशानी से हार जाते हैं
सोचो उन पर क्या बीती होगी जब
मौत सामने हो और वह फिर भी
दूसरों की जिंदगी बचा रहे थे वो
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सभी शहिदों की शहादत दिवस
का शताब्दी वर्ष पर उनको
श्रद्धांजलि और आभार।
हमारे आजाद भविष्य के लिए
हमारे पूर्वजों के द्वारा किये गए
समर्पण पर हमें गर्व होना चाहिए।
#जलियांवाला बाग हत्याकांड
13 अप्रेल 1919 - 13 अप्रेल 2019-
मीट गए वतन के खातिर
चिंगारी लिए अपनी आँखों में
आज़ाद हो उठा मेरा भारत
लाखों शहीदों की कुर्बानी से-
इंसानियत भी शर्मशार हुई थी,
अंग्रेजों की क्रूरता-बर्बंरता पर,
जनरल डायर नही वो कायर था,
निहत्थों पर गोलियाँ चलाने वाला,
रक्त-रंजीत बैसखी का काला दिन,
अत्याचार की गाथा का इबारत था,
नमन उन गुमनाम वीर शहीदों को,
जो कुर्बान हो गए मातृभूमि के लिए।-
अंग्रेजों की बर्बरता से लिखी हुई कहानी है।
जो शहीद हो गई वतन पर ऐसी अमर जवानी है।
हाथ में जिनके बन्दूकें थीं वो डर गए निहत्थों से।
जलियांवाला बाग नहीं सबकी आंखों का पानी है।
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