सहराओं में सैराब देखे हैं,
जलती आँखों में ख़्वाब देखे हैं।
चुभते रहते हैं ख़ार की तरह,
हमने ऐसे गुलाब देखे हैं।-
कारी कारी अंधियारी भादौ की वा रात सखि घिर आई घटा घनघोर आसमान पे।
सांय सांय सन सन झूम के चले पवन नाचती बिजुरिया थी बरखा की तान पे
मोहना को ले के वसुदेव चले नंदगाँव बढ़ आई यमुना तो बन गई जान पे
चरणों को छूकर निहाल हुई सूर्यसुता वारी वारी जाए सांवरे की मुस्कान पे-
दूजी माँ ब्रह्मचारिणी, लिए कमण्डलु हाथ
आदिशक्ति जगदंबिका,झुका चरण में माथ-
प्रथम रूप पर्वतसुता, अद्भुद और अनूप।
सुंदर है ऐसा कि हो, सुबह सुबह की धूप।-
बदल सकता है जब अंज़ाम तो मायूस क्या होना,
कहानी अब भी जारी है मेरा क़िरदार ज़िंदा है।।-
सजीले से चटक रंगों की उतरी द्वार पर डोली,
हवाओं में सुनाई दे रही है प्यार की बोली।
छुड़ा कर मैल मन का मैं तनिक सा मुस्कुराई तो,
मेरे घर आ गईं खुशियां बनाकर प्रेम से टोली।।-
सजीले से चटक रंगों की उतरी द्वार पर डोली,
हवाओं में सुनाई दे रही है प्यार की बोली।
मिटा कर बैर मन से मैं तनिक सा मुस्कुराई तो,
मेरे घर आ गईं खुशियां बनाकर प्रेम से टोली।।
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कुछ तो ऐसा कर चलो,रहे जगत को याद।
सदा रहे सद् आचरण, मीठा हो संवाद।
कुछ तो ऐसा कर चलो,मिले सभी को ठाँव।
वृक्ष लगाओ फल मिलें और धूप में छाँव।
मुक्ता शर्मा
मेरठ-
अंग अंग छाया अनंग,पोर पोर उल्लास।
फागुन का मुख देखकर,हर्षाया मधुमास।।-
देखते देखते प्राणधन बन गए,
तुम तो ऋतुराज का आगमन बन गए।
जब से देखा तुम्हें बस उसी दिन से तुम,
स्वप्न आंखों का मन की लगन बन गए।
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