Mukta Sharma   (Mukta Sharma)
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Teacher
Joined 13 April 2021


Teacher
Joined 13 April 2021
15 HOURS AGO

सहराओं में सैराब देखे हैं,
जलती आँखों में ख़्वाब देखे हैं।
चुभते रहते हैं ख़ार की तरह,
हमने ऐसे गुलाब देखे हैं।

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16 AUG AT 21:04

कारी कारी अंधियारी भादौ की वा रात सखि घिर आई घटा घनघोर आसमान पे।
सांय सांय सन सन झूम के चले पवन नाचती बिजुरिया थी बरखा की तान पे
मोहना को ले के वसुदेव चले नंदगाँव बढ़ आई यमुना तो बन गई जान पे
चरणों को छूकर निहाल हुई सूर्यसुता वारी वारी जाए सांवरे की मुस्कान पे

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31 MAR AT 7:27

दूजी माँ ब्रह्मचारिणी, लिए कमण्डलु हाथ
आदिशक्ति जगदंबिका,झुका चरण में माथ

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30 MAR AT 19:07

प्रथम रूप पर्वतसुता, अद्भुद और अनूप।
सुंदर है ऐसा कि हो, सुबह सुबह की धूप।

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19 MAR AT 21:16

बदल सकता है जब अंज़ाम तो मायूस क्या होना,
कहानी अब भी जारी है मेरा क़िरदार ज़िंदा है।।

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13 MAR AT 23:00

सजीले से चटक रंगों की उतरी द्वार पर डोली,
हवाओं में सुनाई दे रही है प्यार की बोली।
छुड़ा कर मैल मन का मैं तनिक सा मुस्कुराई तो,
मेरे घर आ गईं खुशियां बनाकर प्रेम से टोली।।

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13 MAR AT 22:06

सजीले से चटक रंगों की उतरी द्वार पर डोली,
हवाओं में सुनाई दे रही है प्यार की बोली।
मिटा कर बैर मन से मैं तनिक सा मुस्कुराई तो,
मेरे घर आ गईं खुशियां बनाकर प्रेम से टोली।।

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17 FEB AT 21:34



कुछ तो ऐसा कर चलो,रहे जगत को याद।
सदा रहे सद् आचरण, मीठा हो संवाद।

कुछ तो ऐसा कर चलो,मिले सभी को ठाँव।
वृक्ष लगाओ फल मिलें और धूप में छाँव।
मुक्ता शर्मा
मेरठ

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14 FEB AT 19:55

अंग अंग छाया अनंग,पोर पोर उल्लास।
फागुन का मुख देखकर,हर्षाया मधुमास।।

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21 DEC 2024 AT 15:33

देखते देखते प्राणधन बन गए,
तुम तो ऋतुराज का आगमन बन गए।
जब से देखा तुम्हें बस उसी दिन से तुम,
स्वप्न आंखों का मन की लगन बन गए।

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