SȺᵾmɏȺ ŧɍɨᵽȺŧħɨ🌸 24 FEB AT 20:32 क्या ढूढे़ हैं इस जमाने में तुअपनी भी कभीथोड़ी रख, खबर!निकल पड़ा जिस खोज मे तुउसके लिये थोड़ी रख, सबर !! - साक्षी सांकृत्यायन 8 DEC 2019 AT 22:24 तू निराश है क्यों इस भीड़ के ज़माने मेंवक़्त लगता है सभी का सही वक्त आने में।थोड़ा मेहनत है अपने ही पसीनों को बहाने मेंअसली मज़ा तो यही है मंजिल को अपनी पाने में।फ़ुरसत से रुकना एक दिन तुम अपने ठिकानों मेंअभी तो बस चलना ही है इस रेत के तूफानों में।अपनी आत्मा लगा दो तुम कर्म को निभाने मेंयही सही बस वक्त है नही व्यर्थ करो गँवाने में।इतरा रहे हैं लोग जो तुमको अभी अपनाने मेंआएगा ऐसा वक्त भी तुम्हें सब लगेंगे मनाने में।फड़फड़ायेगे कुछ लोग भी तुम्हें देखकर ज़माने मेंउनके लिए न व्यर्थ करना ख़ुद को सही दिखाने में।~ © साक्षी सांकृत्यायन - shahil sharma 28 FEB 2018 AT 16:46 सब कुछ समझते है ,पर बोलने में डरते है ,आजकल के ज़माने में ,हम रिश्तों को अनमोल समझते है । - Mahendra Inaniya 23 JAN 2019 AT 9:02 सब कुछ सेबहुत कुछ तकका सफर ...विश्वास हैं । - सिद्धार्थ मिश्र 7 NOV 2019 AT 12:43 और भी थे,जमाने में !!जो ख़ुदा होने का,दम भरते थे!!तुम पहले नही हो,और ना ही अंतिम,ये दास्ताँ!!बार बार ,दोहराई जायेगी,लेकिनअंजाम हर बार,सिफ़र होगा!!*आजमा लो अपने अहंकार कोसिद्धार्थ मिश्र - सिद्धार्थ मिश्र 5 MAR 2019 AT 15:17 न कुछ रंग होता जमाने में यारों,अगर इस जहां में वफायें न होती,स्वतंत्र, क्या मैं करता अकेले यहां पर,अगर आप सबकी दुवाएं न होती...!!सिद्धार्थ मिश्र - Mayaank Modi 31 JUL 2019 AT 22:29 दोनों ही कूसूरवार है जानां,इस ज़माने में ।तुमने देर कर दी,रौशनी लाने में ।और हम मशगूल रहे,दीये बनाने में ।। - Satyajeet Mishra 25 APR 2020 AT 12:46 गुलाबों के पंखुरियों को इतनी दबाई गई पन्नो सेरँग उतरे नही अभी ठीक से महक छीन ली गईनज़रे मिलाने की बात गांव में क्या फैलीजुर्म किए नही अभी ठीक से और ज़िन्दगी छीन ली गईइज़हार-ए-इश्क़ का सहारा लबों से क्या लिया हमनेलबों-लबों के बीच कम्बख़्त ये जमाना आ गईऔर दिल का पता भेज देता मैं चिट्ठी बंद कर उसकोगर बीच मे बात उसके खसारे की ना होती - Abdul hakim shaikh 5 NOV 2020 AT 14:39 हम जमाने की खुशी और रंजो गम मे शरीक होते हैइसलिये हमारी खुशिओं मे सितारे भी शरीक होते है - सिद्धार्थ मिश्र 23 AUG 2018 AT 16:40 तेरे इश्क़ में ऐसी हालत हुई है,दीवाना हमे लोग कहने लगे हैं..!हदें पार सारी वफाओं की करके,सितम नाख़ुदा के भी सहने लगे हैं..!नहीं था मेरा वास्ता महफिलों से,मगर अब ज़माने में रहने लगे हैं...!तुम्ही सोचो ना दर्द की इन्तेहाँ है,लहू अश्क़ बन कर के बहने लगे हैं..! -