ज़िन्दगी के बाद मिले सुकून-ए-लहद मुझको
इसके लिए करना पड़ेगा आज अहद मुझको
अफ़्कार-ए-जहां से भर गया कासा-ए-चश्म
यूँ ख़ुशियों की करनी पड़ी जद्दोजहद मुझको-
मैं तो अब तक खुद का ही नही हो पाया।
तुम अपना बनाने के लिए जद्दोजहद कर रहे।-
इक जद्दोजहद है खुद में खुद को ढूंँढ पाने की
एक उलझन तुझसे खुद को छिपाए रखना है !-
जीने लगा था तुम्हारे ख़्वाबों में इस कदर,
खुद को अब पाने की जद्दोजहद में मर रहा।-
बिता दी तमाम ज़िंदगी जद्दोजहद में जीने की,
उम्र गुज़ार दी हमने फ़क़त आशियाने की ख्वाहिश में !-
चीजों का खैरात में मिलना कुछ रास नहीं आता,
जद्दोजहद के बाद ना मिलना ज्यादा सुकून देता है।-
फैसले तो दिल के होते हैं..
दिमाग तो सिर्फ जद्दोजहद करता है
कुछ आलमगीर से होते हैं शिकवे शिकायतें
बस जहन से उतरने का सवाल रहता है..!-
न नज़्म, न ग़ज़ल, न ही ख़्याल लिखती हूँ,
मामूली इंसान हूँ साहब, सवाल लिखती हूँ।
वो टैग करते हैं, पाँच सितारा होटलों को,
मैं पानी में कुछ दानों को, दाल लिखती हूँ ।
मौक़ापरस्त कसते रहे कोड़े, जान फौलाद,
छलनी उस छाल को, मैं खाल लिखती हूँ ।
वो साल भर का जश्न मनाते हैं , लम्हों में,
मैं हर लम्हे को, मुश्किल साल लिखती हूँ ।
गुनाहों को बचपना बता, वो बरी होते रहे,
मैं अपने बचपने को भी, मलाल लिखती हूँ।
यूँ तो लिखती हूँ मुफ़लिसी की जद्दोजेहद,
वो कहते हैं मैं ख़ालिस बवाल लिखती हूँ !
-