गर तुम ना समझो जज़्बात मेरे
तो रद्दी हैं तमाम अल्फ़ाज़ मेरे;-
कुछ गेसुओं से टूटे कुछ जुबां से फिसले
ना जाने किनते अरमां तेरी आँखों से निकले.
वफ़ा के कागज काले और नेकी में जाले
ना जाने किनते किस्से यहाँ बेवफा निकले.
जज्बातों के सवाल और भीड़ के बवाल उलझे रहे
मेरे सिक्के भी तेरी तरहा सब दफा निकले-
कांटे चुभने पर फ़ौजी ने मुस्कुरा दिया,
शायद वो कांटों के जज़्बात समझ गया,
न जाने फूलों को महफूज़ रखने में
उन्होंने कितनी गालियां खाई होगी।-
बर्फीली सी उस रात में,,,
इश्क की बरसात हुई ,,,
जब मेरे महबूब ने,,,
खुद को मेरा हकदार कहा!!-
उस,, बेहिसाब दर्द में आपका नाम लेना
हमारी जु़बां ने ,,खुद ही सीख लिया
पर ,, सुकून ज़रूर ही पा लेते हम
जब आपके,,
हर आराम में हमारा ,,होता ज़िक्र!!;-
जज़्बात यदि मोहब्बत को बढ़ाती है, तो
जज़्बात ही व्यापक "क़यामत" भी लाती है।
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जल्दी सोना मेरी मजबूरी है,,,
समझाऊं कैसे ,,इस दुनिया को
उनसे ,मिलना होता है ख्वाबों में रोज
वरना वो ,, नाराज हो जाते हैं-
शब्द हज़ार मिले मुझे लिखने को,
हर शब्द से कर दिए बयां जज़्बात को।
पर ना मिल सकें ऐसे कोई शब्द मुझे,
जोड़ कर जिन्हें कर सकूं बयां शब्दों में मां- बाप को।।-